महाराष्ट्र में महा-नाटक
महाराष्ट्र में शिवसेना के रवैया से सरकार गठन में जो गतिरोध उत्पन्न हुआ है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। शिवसेना का रवैया निहायत ही अपरिपक्व और अविवेकी है।
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हालांकि एक दिन पहले यह कहने के बाद कि हम गठबंधन धर्म का पालन करेंगे उम्मीद जगी थी कि शायद गतिरोध खत्म हो गया है और शिवसेना जनादेश का पालन करते हुए भाजपा के साथ मिलकर सरकार गठन कर लेगी। लेकिन फिर बयान आया है कि हमारे पास 175 विधायकों का बहुमत है और हमारे पास विकल्प भी है। मगर 175 विधायक कहां से आ सकते हैं? राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के 54 सदस्य हैं और कांग्रेस के 43 विधायक। अगर दोनों पार्टयिां समर्थन दे देती है तब भी 175 की संख्या नहीं हो सकती।
जाहिर है शिवसेना जो बयान दे रही है उसका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं और इसी में उसकी अपरिपक्वता झलकती है। अभी तक राकांपा का बयान रहा है कि हमें विपक्ष में बैठने का आदेश मिला है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में अभी तक कुछ नहीं कहा है। लेकिन प्रादेशिक नेतृत्व में शिवसेना के साथ सरकार बनाने या समर्थन देने और ना देने के बीच द्वंद्व चल रहा है।
कुछ नेताओं ने कहा है कि अगर शिवसेना हमसे समर्थन मांगती है तो देना चाहिए और हम केंद्रीय नेतृत्व से इसकी मांग करेंगे। अगर कांग्रेस शिवसेना के साथ जाती है तो उसको अनेक ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने पड़ेंगे। भाजपा और शिवसेना साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी तो जनता ने जनादेश दोनों दलों को साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए दिया था। अगर शिवसेना या भाजपा कोई भी अपने को अलग करती है तो जनादेश का अपमान होगा। अभी तक शिवसेना इससे अलग होने का संकेत दे रही है।
जो भी बयान हैं उससे लोगों के अंदर यह भाव पैदा हो रहा है कि चूंकि भाजपा को बहुमत से काफी कम सीटें मिली है इसलिए दबाव डालकर मनमाफिक मंत्रालय हासिल करना चाहते हैं। शिवसेना को समझना चाहिए कि जनता ने वोट दिया है सरकार बनाने के लिए, गतिरोध के लिए नहीं। विपक्षी पार्टयिों को भी सोचना चाहिए कि अगर कोई पार्टी गैर जिम्मेदार तरीके से गठबंधन में होते हुए भी गठबंधन विरोधी बात करके सरकार गठन में गतिरोध पैदा कर रही तो उनकी भूमिका से इसको बल नहीं मिले। यह संपूर्ण भारतीय राजनीति के लिए क्षतिकारक होगा।
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