दोहरी चुनौती
भारतीय जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने करीब साढ़े छह दशक पहले भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर के वास्तविक एकीकरण का जो सपना देखा था, वह बीते बृहस्पतिवार को पूरा हो गया।
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उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को जो विशेष राज्य का दरजा दिया गया था, उसका कड़ा विरोध करते हुए आंदोलन चलाया था। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग कानून था। डॉ. मुखर्जी ने ‘एक देश में दो विधान और दो निशान नहीं चलेगा’ का नारा बुलंद किया था।
उन्होंने इस संवैधानिक प्रावधान का विरोध करते हुए जब जम्मू-कश्मीर कूच किया तो उन्हें वहां की तत्कालीन सरकार ने हिरासत में ले लिया था। यह 11 मई 1953 की बात है। हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई थी। पिछले पांच अगस्त को संसद ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करके जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया। मोदी सरकार द्वारा लिया गया निर्णय ऐतिहासिक था। हालांकि अनुच्छेद 370 को समाप्त करना भाजपा का पुराना एजेंडा था। 2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में भी इसे शामिल किया गया था। इस नाते भाजपा के इस निर्णय को गलत नहीं ठहराया जा सकता।
भाजपा का मानना है कि अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर में हिंसा, अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा दिया है। सूबे के बेरोजगार नौजवान कंधे पर बंदूक उठाकर देश की मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ते जा रहे थे। इतना ही नहीं इस अनुच्छेद के कारण राज्य की जनता केंद्र की अनेक योजनाओं से लाभान्वित होने से वंचित रह जाती थी। यह संयोग मात्र है कि बीते बृहस्पतिवार को देश के पहले गृहमंत्री लौह पुरुष सरदार पटेल का जन्मदिन भी था, जिन्हें आजादी के बाद देश की 560 रियासतों को भारतीय संघ में विलय कराने का श्रेय दिया जाता है।
अब जम्मू-कश्मीर सीधे केंद्र के कानूनों से नियंत्रित होगी। इसलिए सूबे के विकास की पूरी जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार की होगी। भारतीय संघ में जम्मू-कश्मीर के एकीकरण का पहला चरण पूरा हो गया है। अब देखना है कि मोदी सरकार राज्य के विकास को लेकर जो सपने दिखा रही है, उसे साकार कर पाती है या नहीं। अभी भी कश्मीर भीतर से उबल रहा है।जाहिर है सरकार के सामने सूबे में शांति बहली के साथ विकास कार्य को आगे बढ़ाने जैसे दोहरी चुनौती है।
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