यूरोपियन सांसदों का दौरा
यूरोपीय यूनियन (ईयू) के 23 सांसदों के शिष्टमंडल के गैर आधिकारिक कश्मीर दौरे को लेकर देश में सियासी गहमागहमी बढ़ गई है।
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गौरतलब है कि कश्मीर में जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र सरकार के ऐलान के बाद यह पहला उच्चस्तरीय विदेशी शिष्टमंडल कश्मीर के दौरे पर आया है। दो दिवसीय यात्रा पर आए ईयू सांसदों को सरकारी अधिकारी घाटी के हालात के अलावा जम्मू-कश्मीर के अन्य हिस्सों की स्थिति के बारे में जानकारी देंगे। लेकिन इस दौरे को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सवाल उठाए हैं।
स्वामी ने सीधे तौर पर यूरोपीय संघ के शिष्टमंडल के जम्मू-कश्मीर दौरे को लेकर केंद्रीय सरकार पर हमला बोला है। स्वामी का सीधे तौर पर कहना है कि यह हमारी राष्ट्रीय नीति से उलट है। उन्होंने इस दौरे को रद्द करने की मांग की। वहीं यूरोपीय संघ के सांसदों के प्रतिनिधिमंडल को जम्मू-कश्मीर का दौरा करने की इजाजत देने के केंद्र सरकार के कदम को लेकर कांग्रेस और सीपीएम भी हमलावर है। कांग्रेस का आरोप है कि भारतीय नेताओं को वहां जाने की अनुमति नहीं देना और विदेश के नेताओं को इजाजत देना देश की संसद एवं लोकतंत्र का पूरी तरह अपमान है।
हालांकि केंद्र सरकार के इस दौरे को लेकर अपने तर्क हैं। चूंकि पाकिस्तान कश्मीर को लेकर किस तरह की मानसिकता से ग्रसित है और अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से वह घाटी में किस तरह की साजिशें रच रहा है, इसका बखूबी भान विश्व के बाकी देशों को है। केंद्र सरकार की मंशा है कि ईयू प्रतिनिधिमंडल सूबे का दौरा करे और वहां कराए जा रहे विकास कार्यों व अमन बहाली के लिए किए जा रहे गंभीर प्रयासों को अपनी आंखों से देखे। इसमें कोई बुराई नहीं है। वैसे सरकार को ऐसी उदारता देश के राजनीतिक दलों के नेताओं को लेकर भी दिखाना चाहिए। विदेशी दल को अनुमति और अपने देश के नेताओं के दौरे पर रोक से गलत संदेश जाएगा। हां, विपक्षी दलों को भी देशहित को तवज्जो देने की समझदारी दिखानी होगी। उन्हें सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए। कश्मीर को लेकर पाकिस्तान ने जिस तरह से वैश्विक मंचों पर भारत के खिलाफ प्रोपेगेंडा रचा है, उसकी मुखालफत अगर भारत के ही सियासी दल करेंगे, तो बेहतर होगा।
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