बाज नहीं आए लोग
आशंकाएं सही साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के बावजूद दिल्ली में इस बार की दीवाली पटाखों से बहुत बची नहीं रह गई।
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सुप्रीम कोर्ट जिन हरित पटाखों पर जोर दे रहा था, वैसा पूरी तरह से नहीं हुआ। दिल्ली सरकार ने भी कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में लेजर शो का आयोजन किया ताकि दिल्लीवासी शहर में वायु प्रदूषण के प्रति सचेत होकर पटाखों से दूर रहें। लेकिन आखिरकार दीवाली के बाद वायु और ध्वनि प्रदूषण काफी ऊंचा चला गया। बेशक यह तीन साल पहले के मुकाबले कुछ कम रहा है, जब हालात इतने बिगड़ गए थे कि दिल्ली सरकार को ऑड-इवेन नंबर वाले वाहनों के लिए फामरूला लाना पड़ा और निर्माण गतिविधियों पर तमाम तरह की रोक लगानी पड़ी।
इस साल दीवाली के आसपास पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में केंद्र और राज्य सरकारों के दावों के विपरीत पराली जलाने की घटनाएं भी कम तो नहीं हो पाई हैं। इससे दीवाली के पहले ही दिल्ली के वातावरण में धुंध की एक परत छाने लगी थी। उम्मीद थी कि दीवाली में लोग कुछ हद तक पटाखों से परहेज करेंगे, लेकिन वायु प्रदूषण को देखकर लगता है कि लोगों की जागरूकता में अभी कमी है। हालांकि ऐसी खबरें भी हैं कि पटाखों की बिक्री काफी कम हुई है और हरित पटाखे भी बाजार में कुछ हद तक उपलब्ध थे।
लेकिन वायु और ध्वनि प्रदूषण से पता चलता है कि प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों की बिक्री तो हुई है। ऐसे में क्या सरकार और नियामकों को भी और कड़े कदम उठाने की दरकार हो सकती है? कहा यह भी जा रहा था कि बड़े पैमाने पर स्कूलों में और अन्य संस्थाओं में पटाखे न जलाने के प्रति बच्चों और लोगों को जागरूक किया गया है। इससे इनकार नहीं कि ऐसे प्रयासों का कुछ तो असर दिखा होगा। लेकिन ये प्रयास अभी भी नाकाफी रह जा रहे प्रतीत होते हैं। निश्चित रूप से और कई तरह के कदम उठाने की जरूरत पड़ सकती है।
हालांकि यह भी देखना चाहिए कि इन कदमों के प्रतिकूल असर न पड़ें क्योंकि जैसे ही आप किसी खास समय में विशेष चीजों की बिक्री पर अचानक प्रतिबंध लगा देते हैं तो उससे ढेरों लोग रोजगार से वंचित हो जाते हैं। ऐसे ही आर्थिक मंदी के इस मौसम में रोजगार घटते जा रहे हैं। इस दीवाली में बाजार बहुत हद तक सूने पड़े रहे हैं और छोटे दुकानदार तो काफी परेशानी में बताए जाते हैं। इसलिए सरकार को हर कदम बहुत ही संवेदनशील तरीके से उठाना चाहिए और लोगों में जागरूकता पैदा करनी चाहिए।
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