चीन की चेतावनी
चीन के राष्ट्रपति शी जिनिपंग की इस चेतावनी को हल्के में नहीं लिया जा सकता कि देश तोड़ने की कोशिश करने वालों को कुचलकर रख देंगे।
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नेपाल की यात्रा के दौरान ऐसा बोलने के निश्चित मायने हैं। यह समझना मुश्किल नहीं है कि उनका इशारा किस ओर है? तिब्बत को पूरी तरह निगल जाने की तमाम कोशिशों के बावजूद यह अभी भी बड़ी समस्या है। जब तक तिब्बतियों के सबसे बड़े धर्मगुरु ओं में से एक दलाई लामा भारत में हैं, उनके साथ शरणार्थी भारी संख्या में भारत और कुछ नेपाल में हैं तब तक चीन को चैन नहीं मिलने वाला।
हालांकि भारत ने दलाई लामा को राज्य अतिथि के अनुसार सारे प्रोटोकॉल एवं तिब्बतियों को नागरिकता छोड़कर मतदान के अलावा लगभग वे सारे अधिकार दिए हैं जो भारतीय को प्राप्त हैं। उनके लिए कुछ विशेष भी किया गया है। चीन ने पूरी कोशिश की कि भारत दलाई लामा और तिब्बतियों तथा तिब्बत के प्रति अपनी नीति बदले। उसकी यह कोशिश इतनी ही सफल हुई कि भारत की पूर्व सरकारों ने तिब्बत को चीन का भाग करार दे दिया।
हालांकि इसके एवज में चीन ने हमें कोई रियायत नहीं दी है। सीमा विवाद जस के तस है तथा कश्मीर को लेकर वह पाकिस्तान के साथ खड़ा है। उसमें ठीक भारत यात्रा के बाद की इस चेतावनी को यकीनन गभीरता से लेना होगा। दरअसल, चीनी दलाई लामा को अलगाववादी मानते हैं और उनके बारे में जितने अपमानजनक शब्द हो सकते हैं प्रयोग करते हैं। वैसे चीनी यह भूल जाते हैं कि हमने तिब्बतियों को शरण देते हुए भी यहां से विद्रोही गतिविधियों की स्वतंत्रता नहीं दी है।
लेकिन हमने तिब्बतियों को यहां निर्वासित संसद का चुनाव कराकर धर्मशाला में अपनी सरकार चलाने की आजादी दी हुई है। यह चीन को अखड़ता है। उनकी इस चेतावनी से भारत डरकर पीछे नहीं हट सकता। इसके उलट यह हमें विचार करने को मजबूर करता है कि क्या तिब्बत की आजादी को लेकर भारत को धीरे-धीरे पहले से ज्यादा खुलकर सामने आना चाहिए?
इस बयान के बाद तिब्बतियों के लिए भारत में तो कोई समस्या नहीं आने वाली मगर नेपाल में उनकी परेशानी बढ़ेगी। नेपाल इस समय चीन की गोद में बैठता जा रहा है और उसके दबाव में भी है। तो वहां के तिब्बतियों के खिलाफ सख्ती बरती जाएगी। इससे उनकी कठिनाइयां बढ़ेगी। भारत को इसमें भूमिका निभानी चाहिए। अगर चीन के दबाव में नेपाल उनके खिलाफ सख्ती बरतता है तो भारत उससे ऐसा न करने के लिए कहे।
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