बढ़ने लगा प्रदूषण
जिसका डर था, वही हुआ। राजधानी दिल्ली समेत एनसीआर में सांसों पर संकट का समय शुरू हो चुका है। पराली जलाने और कुछ स्थानीय कारकों के चलते दिल्ली की आबोहवा जहरीली होने लगी है।
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पड़ोसी राज्यों में पराली जलने से हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 में 10 से 20 प्वाइंट की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके आने वाले दिनों में और ज्यादा बढ़ने की आशंका जताई गई है।
चिंता की बात है कि ग्रेडेड रेस्पांस प्लान (ग्रैप) लागू होने से पहले ही दिल्ली-एनसीआर में घुटन वाली हवा बहने लगी है। इसके कारण दिल और फेफड़ों के मरीजों को खासंिहदायत बरतने की सलाह दी गई है। तमाम एजेंसियों के होने के बावजूद प्रदूषण को लेकर कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर का वातावरण दमघोंटू बना हुआ है। खासकर सर्दियों का मौसम शुरू होने के साथ हवा दूषित होने लगती है और त्राहिमाम मचने लग जाता है। पिछले ढाई महीने से साफ-सुथरी हवा ले रहे लोगों को अब स्मॉग का सामना करना पड़ेगा। जो हालात दिल्ली-एनसीआर में बन रहे हैं, वह इसी तरफ इशारा कर रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि जितनी भी संस्थाएं पर्यावरण को लेकर कार्यरत हैं, उनमें एका नहीं है। सभी अपने-अपने तरीके से कामों को अंजाम देते हैं। नतीजतन वह हासिल नहीं होता, जो होना चाहिए।
गौरतलब है कि दूषित हवा के कारण भारत में एक साल में 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। छोटे शहर भी प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। दिल्ली से सटे हापुड़ और बुलंदशहर में जीवन प्रत्याशा 12 घट चुकी है। कहने का आशय कि प्रदूषण के खिलाफ सरकार को ‘गोरिल्ला वॉर’ की शुरुआत करनी होगी। कूड़े जलाने वालों पर निगरानी रखने के लिए पेट्रोलिंग की संख्या बढ़ानी होगी।
प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ जेल भेजने तक के सख्त फैसले लेने होंगे। जागरूकता का दायरा बढ़ाना होगा। अभी भी यह देखा जाता है कि जनता में कूड़ा-करकट को आग लगा देने और इससे होने वाले नुकसान का ज्ञान नहीं है। एक बात तो तय है कि प्रदूषण की लड़ाई लंबी जरूर है, मगर इस पर विजय हासिल की जा सकती है। बशत्रे जनता को भी सरकार के साथ कदमताल करे। अपनी आदतों में परिवर्तन लाना होगा, तभी आने वाली पीढ़ी स्वच्छ हवा में सांस ले सकेगी।
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