सहारा इंडिया मीडिया की पहल : जमीन कम पड़ जाएगी तब

Last Updated 13 Oct 2019 01:27:38 AM IST

आज जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ हमें जनसंख्या वृद्धि पर भी विस्तार से बात करने की आवश्यकता है। विश्व के साथ भारत में भी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है।


जमीन कम पड़ जाएगी तब

जनसंख्या वृद्धि का सबसे बुरा प्रभाव हमारे वातावरण और पर्यावरण पर पड़ रहा है, जिससे जीवन संबंधी अनेक कठिनाइयां उत्पन्न हो रही हैं। लोग बढ़ रहे हैं पर जमीन घट रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे ही आबादी बढ़ती रही तो लोग रहेंगे कहां? उनके खाने के लिए अनाज कहां उगाए जाएंगे? और अगर जंगल साफ करके रिहाइशी इमारतें बनाई जाती रहेंगी तो जो प्रदूषण इंसान पैदा करता है, उसे सोखने के लिए पेड़ कहां लगाए जाएंगे?

सहारा इंडिया मीडिया की पहल

जल, जमीन, हवा हुई प्रदूषित :  जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति की आवश्यकताएं भी बढ़ रही हैं, जिनसे मनुष्य ने प्रकृति का दोहन करना आरंभ कर दिया, जिसका दुष्परिणाम जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण परिवर्तन के रूप में देखने को मिल रहा है। पर्यावरण के घटक जैसे जल, वायु, मृदा में प्रदूषण बढ़ा है। वाहनों के आवागमन तथा कल-कारखानों से निकलने वाले धुएं के कारण जल प्रदूषण होने लगा। भारत में कारों की संख्या जिस कदर बढ़ रही है, उससे ये लगता है कि आने वाले दिनों में भारत गेहूं, धान, गन्ना, आलू की खेती न करके कारों की खेती करेगा। वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण लोग दमे और सांस जैसी बीमारियों की गिरफ्त में आते जा रहे हैं।
हमारे देश में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा है। कृषि योग्य भूमि की कमी के कारण देश में खाद्यान्न की कमी हो रही है। जनसंख्या के अनुपात में रोजगार के अवसर कम होते गए हैं, जिनसे बेकारी और गरीबी की समस्या बढ़ रही है। हमारे देश में आज भी लगभग 26 फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि से घनी आबादी होने के कारण लोगों में वैमनस्यता तथा द्वेष की भावना बढ़ रही है। लोगों का नैतिक पतन हो रहा है। गरीबी तथा रोजगार के अवसर कम होने के कारण लोगों में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है। चोरी-डकैती की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं।
घटते वनक्षेत्र : आज यदि हम पर्यावरण की सच्चाई से जांच करें तो हमें सच का पता लग जाएगा कि लोगों ने जिस गति से मशीनीकरण के युग में पैर रखा है, तभी से हमारे वातावरण पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा। हमारा देश भारत जहां पुराने समय में प्रकृति का स्वच्छ स्थान माना जाता था। साथ ही प्रकृति की हम पर अपार कृपा थी। पेड़-पौधे, वन्य जीव तब काफी संख्या में पाए जाते थे। वनों का क्षेत्रफल भी अधिक था। लेकिन लोगों ने अपने स्वार्थ से वशीभूत  होकर अपने हाथों से जिस बेरहमी से प्रकृति को नष्ट किया है, उसी से प्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है।

रमेश त्रिपाठी


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