भविष्य से उम्मीदें
ग्लोबल एजेंसी मूडीज इंवेस्टर्स सर्विसेज ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर का अनुमान 6.20 से घटाकर 5.80 प्रतिशत कर दिया।
भविष्य से उम्मीदें |
मूडीज के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती से काफी प्रभावित है और इसके कुछ कारक लंबे समय तक असर डालने वाले हैं। मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सुस्ती का कारण निवेश में कमी है, जिसने बाद में रोजगार सृजन में कमी और ग्रामीण इलाकों में वित्तीय संकट के कारण खपत पर भी असर दिखाया।
मूडीज को भविष्य से उम्मीदें दिखायी दे रही हैं, पर वर्तमान खासा नाउम्मीद करने वाला ही दिख रहा है। पर बात सिर्फ विकास दर में कमी की नहीं है। मूडीज ने कॉपोरेट टैक्स में कटौती और कम जीडीपी वृद्धि दर के कारण राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी की आशंका जताई है। मूडीज का आकलन है कि सरकार के लक्ष्य से 0.40 फीसद अधिक होकर राजकोषीय घाटा 3.70 फीसद पर पहुंच सकता है।
मूडीज का यह आकलन सचाई के करीब ही लगता है कि ‘अंतरराष्ट्रीय मानक के हिसाब से वास्तविक जीडीपी में पांच फीसद की वृद्धि अपेक्षाकृत अधिक है, लेकिन भारत के संदर्भ में यह कम है।’ भारत जैसी अर्थव्यवस्था को बहुत तेज गति से विकास करना है, तब जाकर भारत की जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति संभव हो पाएगी। इसलिए पांच प्रतिशत की विकास दर पर अमेरिका भले ही जश्न मना ले, पर भारत के लिए यह विकास दर निराशाजनक ही मानी जाएगी। मूडीज का ने बहुत महत्त्वपूर्ण बिंदु की ओर इशारा किया है कि निवेश में सुस्ती है।
तमाम उद्योग निवेश नहीं कर रहे हैं। तमाम उद्योगों को लगता है कि अर्थव्यवस्था की मजबूती पर, अर्थव्यवस्था में मांग की मजबूती पर भरोसा नहीं है। इसलिए वह नया निवेश लगाकर अपनी रकम फंसाना नहीं चाहते हैं, पहले वो सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि हर मांग में तेजी आ जाए, तब ही नई क्षमताओं का निर्माण किया जाए, नया निवेश किया जाए। ऐसी सूरत में सस्ती दर पर कर्ज देकर भी कुछ खास संभव नहीं है, जब उद्योगपति नया निवेश करना ही नहीं चाहते, तब उन्हें सस्ते कर्ज से भी प्रेरित नहीं किया जा सकता है। यानी यहां पर रिजर्व बैंक के आसान मौद्रिक नीति की सीमा भी साफ हो जाती है और साफ हो जाता है कि एक हद के बाद रिजर्व बैंक भी सार्थक नीतिगत हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
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