बात नहीं काम
संयुक्त राष्ट्रसंघ के जलवायु आपदा शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह आह्वान काफी महत्त्वपूर्ण है कि अब उपदेश देने का नहीं काम करने का समय है।
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वास्तव में जलवायु परिवर्तन जिस तरह भयावह रु प अख्तियार कर रहा है, उसमें धरती के विनष्ट होने का खतरा मौजूद है। बढ़ते तापमान को देखते हुए दुनिया भर के वैज्ञानिक एवं पर्यावरणवादी कार्बन उत्सर्जन कम करने पर जोर दे रहे हैं, क्योंकि इस समय यह उच्चतम स्तर पर है।
भारत को इसके पहले क्रम में ही बोलने का स्थान दिया गया था। इस समय प्रधानमंत्री मोदी की बात दुनिया ध्यान से सुनती है और भारत ने पर्यावरण, सतत विकास एवं सबको स्वास्थ्य के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य में तेज स्वर मिलाया है। प्रधानमंत्री मोदी की बात का महत्त्व इसलिए है, क्योंकि भारत ने पेरिस समझौते के अनुसार कदम उठाने की पूरी कोशिश की है। प्रधानमंत्री ने बताया भी कि भारत गैर-परंपरागत (नॉन फॉसिल) ईधन उत्पादन के लक्ष्य को दोगुने से अधिक बढ़ाकर 2022 तक 450 गीगावाट तक पहुंचाने के संकल्प को पूरा करने पर तेजी से कम कर रहा है।
पेरिस जलवायु समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धता का पालन करते हुए भारत 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करेगा। जब मोदी ने कहा कि भारत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पनबिजली जैसे गैर-परंपरागत ईधन के उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएगा तो चारों ओर तालियां गूंज गई। मोदी को सुनने के लिए कई नेता बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के वहां पहुंचे थे, जिनमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल थे। वास्तव में यह खबर तो सारे नेताओं एवं राजनयिकों को मालूम था कि भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ के छत पर सोलर पैनल लगाया है जिसका उद्घाटन होना है। इसका लक्ष्य पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना ही है। मोदी का यह कहना भी सही है कि अब इसे कमरे के विमर्श से निकालकर जन आंदोलन बनाना होग
देशों को आगे आकर उसके लिए कदम उठाने होंगे। इस सरकार के शासनकाल में जितने महत्त्वपूर्ण सड़कें बनी हैं, सब पर पर सोलर पैनल लगाए गए हैं। भारत ने फ्रांस के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा संगठन बनाया है, जिसमें करीब 90 देश भागीदारी कर रहे हैं। इस तरह भारत कुछ मामलों में धरती का तापमान घटाने के लक्ष्य की दिशा में नेतृत्व की भूमिका भी निभा रहा है। जब हम काम करते हैं तो फिर बोलते समय आत्मविश्वास रहता है और यही मोदी के वक्तव्य में झलकता है।
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