न्यायालय का हस्तक्षेप
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उन्नाव कांड में हस्तक्षेप के बाद इसमें त्वरित न्याय की संभावना बनी है। अब मामला दिल्ली के न्यायालय में चलेगा।
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न्यायालय ने सीबीआई से अभी तक की प्रगति पर पूरी रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट देखने के बाद न्यायालय का यह आदेश कि सप्ताह के अंदर जांच पूरी करे अभूतपूर्व है। सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल एक महीने का समय मांग रहे थे। जाहिर है कि न्यायालय इस मामले को लेकर पूरी तरह सक्रिय हो गया है। हालांकि कई बार जल्दबाजी में जांच एजेंसी गलतियां करती हैं। बावजूद यहां सर्वोच्च न्यायालय की नजर है तो उम्मीद की जा सकती है कि गलतियां नहीं होंगी। ऐसा नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय अगर सीबीआई को जांच में वाकई आगे कुछ समय चाहिए तो अविवेकी तरीके से उसे नकार देगा। एक सप्ताह के समय का मतलब है कि इस मामले को लटकाया नहीं जाए। दुर्घटना की पूरी जांच हो जाए।
लड़की के आरोपों की जांच में जो कमी रह गई है, उसे पूरा कर लिया जाए। लड़की के पिता की मृत्यु से संबंधित मामले भी साफ हो जाएं, जो गवाह मारा गया उसके बारे में स्पष्ट रिपोर्ट मिल जाए..। उप्र सरकार ने पिछले साल हालांकि विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन किया था। लेकिन मांग के बाद मामले को सीबीआई को सौंप दिया। तो सीबीआई सारे मामले की पहले से जांच कर रही है। अब दुर्घटना को भी सवालों के घेरे में जाए जाने के बाद सरकार ने सीबीआई को सौंप ही दिया था। हालांकि ऐसे मामलों में सीबीआई का रिकॉर्ड बढ़यिा नहीं है। उदाहरण के लिए सीबीआई ने घोषणा की कि 15 महीने से जेल में बंद कुलदीप सिंह सेंगर से जितने लोगों ने मुलाकात की है, सबकी मोबाइल का रिकॉर्ड चेक किया जाएगा।
वह आरोपित के साथ विधायक भी हैं। वह सजायाफ्ता नहीं हैं। इसलिए उनसे मिलने वालों की भारी संख्या होंगी। अगर एक-एक आदमी का रिकॉर्ड चेक किया जाए तो इसी में कुछ महीने लग जाएंगे। दुर्घटना के पूर्व कुछ दिनों में मिलने वालों के बारे में अवश्य जानकारी जुटानी चाहिए। उसमें भी पहले जो संदेहास्पद लगे उसका रिकॉर्ड खंगाला जाए और बाद में दूसरों का। सीबीआई को ज्यादा सहकर्मी जांच में लगाने होंगे एवं दिन-रात काम करना होगा। इस मामले में न्याय हो, यह कौन नहीं चाहेगा। किंतु बने-बनाए माहौल से अप्रभावित रहते हुए जांच एजेंसी को तथ्य जुटाने होंगे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके।
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