सुरक्षित रहें सड़कें
कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण मोटर वाहन संशोधन विधेयक संसद से अभी पास नहीं हो सका, लेकिन इस बात की पूरी उम्मीद है कि इसे उसका अनुमोदन मिल जाएगा।
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वर्तमान चुनौतियों के मद्देनजर पुराने पड़ चुके कानून में संशोधन जरूरी है, ताकि सड़कों पर बढ़ती दुर्घटनाओं और मृत्यु को नियंत्रित किया जा सके। जैसे-जैसे सड़कों की लंबाई बढ़ती गई, वैसे-वैसे सड़क पर मौत की घटनाएं भी बढ़ती गई। हालांकि 2017 में इसमें कुछ कमी देखी गई, इसके बावजूद एक साल में करीब डेढ़ लाख मौत कोई कम संख्या नहीं है। इसीलिए भारत की सड़कों को दुनिया की सबसे खतरनाक सड़कों में माना जाता है। अब शहर ही नहीं, गांव भी इसके दायरे में आ चुके हैं।
आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं कि शहरों की तुलना में गांवों में ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं एवं उनसे होने वाली हानि हो रही है। चिंता की बात यह है कि यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। यह कहने में संकोच नहीं किया जा सकता कि आधुनिक विकास ने खुशियां दी हैं तो दर्द भी दे रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार की चिंता वाजिब है। चूंकि ज्यादातर सड़क दुर्घटनाएं यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण हो रही हैं। इसलिए सरकार ने इसके उल्लंघन पर कानून को कड़ा बनाने की पहल की है। विधेयक में अलग-अलग मामलों में जुर्माना पांच से दस गुना बढ़ा दिया गया है।
खास बात यह है कि किशोरों द्वारा यातायात नियमों का उल्लंघन किए जाने पर उसके अभिभावकों का दंडित करने का प्रावधान किया गया है। दूसरा स्वागत योग्य कदम यह है कि ड्राइविंग लाइसेंस देने की प्रक्रिया में तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा ताकि अयोग्य ड्राइवर सड़क पर न आ सकें। दोषपूर्ण उत्पादों एव सड़कों के लिए वाहन निर्माताओं एवं ठेकेदारों को भी इसके दायरे में लाया गया है। लेकिन समस्या कानून के साथ नहीं है, बल्कि इसके क्रियान्वयन की है। वाहनों की जिस प्रकार संख्या बढ़ती जा रही है, उसी पैमाने पर उसको नियंत्रित करने वाले कर्मिंयों की भी जरूरत पड़ेगी।
यही वह पहलू है, जहां केंद्र और राज्य का संबंध सामने आ जाता है। भले ही केंद्र सरकार इस पर कानून बना रही हो, लेकिन इसका क्रियान्वयन राज्यों की एजेंसियों द्वारा ही होगा। अगर राज्य सरकारें इसको लागू करने में तत्परता नहीं दिखाएंगी, तो इसकी सफलता संदिग्ध ही होगी। अगर इन सबकी सक्रिय भागीदारी हो तो भी जब तक समाज के व्यवहार में बदलाव नहीं आता, संशोधन का ज्यादा असर नहीं होगा।
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