विकल्प नहीं इस्तीफे
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन उम्मीद के अनुरूप उसका प्रदर्शन नहीं रहा।
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अगर आशा के अनुरूप परिणाम न आए, तो उसी पैमाने पर निराशा पैदा होना स्वाभाविक है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसका मतलब यही था कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर कोई और बैठे, लेकिन महीना दिन गुजर गया, न तो कोई और कांग्रेस अध्यक्ष का दायित्व संभालने के लिए आगे आया और न ही राहुल गांधी अपने इरादे से पीछे हटते दिख रहे हैं। इस बीच कांग्रेस में इस्तीफों का नया दौर शुरू हो गया है।
ऐसे लोगों की मांग है कि राहुल गांधी अपना इस्तीफा वापस लें और पार्टी का नेतृत्व करें। ऐसे में कई सवाल पैदा होते हैं। क्या राहुल गांधी का पार्टी में कोई विकल्प नहीं है? क्या राहुल गांधी ने इसलिए इस्तीफा दिया था कि पार्टी नेता अपने पद से इस्तीफा दें, ताकि वे अपने मन मुताबिक टीम बना सकें? अगर यह सच है, तो वे कौन लोग हैं, जो राहुल गांधी की इच्छा के खिलाफ इस्तीफा नहीं दे रहे हैं?
अगर इसमें कोई सच्चाई है, तो क्या ऐसे लोग इसलिए इस्तीफा नहीं दे रहे हैं कि पार्टी में उनका कद छोटा किया जा सकता है? अगर इसमें कोई सच्चाई नहीं है, तो फिर ऐसे इस्तीफे की कवायद का औचित्य क्या है? बहरहाल, इन सवालों का उत्तर मिलना कठिन है, लेकिन कांग्रेस के हित में यही है कि उसके बारे में ऐसे सवाल न खड़े हों। आम चुनाव में भारी पराजय का सामना कर चुकी कांग्रेस के लिए आवश्यक है कि वह अपने आपको नए सिरे से संगठित करे। यहां कांग्रेस के सामने समस्या यह है कि गांधी परिवार के बिना उसका सुव्यवस्थित तरीके से चलना मुश्किल है।
अगर गांधी परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति अध्यक्ष रहे भी, तो पार्टी के लिए गांधी परिवार की सक्रियता जरूरी है। परिस्थिति की मांग तो यही है कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहें और इस मुश्किल घड़ी में आगे बढ़ कर मोर्चा संभालें। नेतृत्व को लेकर ज्यादा समय तक अनिश्चितता रहने से पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस के लिए यही उचित होगा कि वह नेतृत्व परिवर्तन के बजाय हार के कारणों का विश्लेषण करे। कांग्रेस को नेतृत्व नहीं, नीति परिवर्तन की जरूरत है। इसके बिना सारी बातें हवा-हवाई हैं।
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