मासूम से हैवानियत
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में ढाई साल की बच्ची के साथ हुई बेरहमी ने पूरे देश को हिला दिया है। देश में जगह-जगह हो रहे विरोध प्रदशर्न यह बता रहे हैं कि लोगों में कितना गहरा क्षोभ है।
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बच्ची का शव जिस अवस्था में पाया गया उससे पता चलता है कि अपराधियों ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया होगा। उसके शरीर का कोई अंग साबूत नहीं था। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों के लिए कठिनाई पैदा हो गई, क्योंकि जिस अंग को वे पकड़ते वही गिर जाता। ऐसी हैवानियत के पीछे की मानसिकता क्या हो सकती है, यह समझने की जरूरत है।
बगैर इसके ऐसी राक्षसी घटनाओं को रोकना संभव नहीं होगा। हालांकि इसमें चार लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन भी हो गया है, सरकार ने फास्ट ट्रैक न्यायालय में मामला चलाने की घोषणा कर दी है। तो अपराधियों को सजा मिलेगी यह निश्चित है। परंतु जिस तरह आरंभ में पुलिस ने पीड़ित परिवार के साथ व्यवहार किया वह बिल्कुल अस्वीकार्य है। पहले उस गरीब परिवार की रिपोर्ट नहीं लिखी गई। एक दिन बाद लिखी गई तो कार्रवाई नहीं हुई।
जब बच्ची का शव कूड़े के ढेर से निकला तो पुलिस रूटिन कार्रवाई के लिए पोस्टमार्टम के लिए निकल गई। यह तो लोगों का विरोध था जिसके कारण शव वे न ले जा सके, अन्यथा मामला आया-गया हो सकता था। लोगों के प्रचंड विरोध के कारण वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को आना पड़ा, डॉग स्क्वॉयड से अपराधी पकड़ में आए। लगातार मासूम बच्चियों के साथ यौन दुराचार एवं हत्या का मामला सामने आते रहने के बावजूद पुलिस का ऐसा रवैया अपराध की श्रेणी में आता है। फिर यह भी समझ से परे है कि अपराधियों ने केवल 10 हजार रु पये न लौटाने के लिए हुई बकझक के कारण ऐसे अपराध को अंजाम दिया जिसके लिए शब्द तलाशना मुश्किल है।
समाज में आपस का लेन-देन भारत की आम परंपरा है। इसमें लौटाने में विलंब के कारण झगड़े भी होते हैं पर इस तरह की घटना तो मनुष्यता को शर्मसार करने वाली है। किंतु इसका यही कारण नहीं हो सकता। मनुष्य इसके लिए समूह बनाकर एक अबोध बालिका के साथ इतना जघन्य व्यवहार नहीं कर सकता है। तो इसके कारणों की गहराई से पड़ताल किए जाने की आवश्यकता है ताकि ऐसी मानसिकता को कमजोर किए जाने का रास्ता निकाला जाए। प्रदेश सरकार इस दिशा में अवश्य विचार करे।
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