आर्थिक समितियां
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दो उच्चस्तरीय मंत्रिमंडलीय समितियों का गठन यह बताता है कि आर्थिक मामलों में सरकार को मिशन मोड में लाने की कोशिश हो रही है।
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सामान्यत: इसे वित्तीय वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही में विकास दर में आई गिरावट और 2017-18 के रोजगार सर्वेक्षण के आंकड़ें से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि इसका चरित्र कहीं ज्यादा विस्तृत एवं बहुआयामी है। एक पांच सदस्यीय समिति आर्थिक मोर्चे का अध्ययन कर उसके अनुसार नीतियां तय करेगी तो दूसरी 10 सदस्यीय समिति रोजगार और कौशल विकास का अध्ययन कर रिपोर्ट पेश करेगी। साफ है कि इन दोनों समितियों का उद्देश्य आर्थिक विकास को गति देने, निवेश का माहौल बेहतर करने के साथ काम करने योग्य आबादी को कौशल प्रशिक्षण द्वारा सक्षम बनाने, उनके लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने और कुल मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था को सभी दिशाओं में गतिमान करना है।
दोनों समितियों में गृहमंत्री अमित शाह के होने के राजनीतिक मायने तो है ही, क्योंकि इससे सरकार में उनके बढ़ते कद का प्रमाण मिल जाता है। दोनों समितियों में वित्त मंत्री के साथ सड़क परिवहन और राजमार्ग और एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी और रेल मंत्री पीयूष गोयल का होना यह बताता है कि सरकार अपनी घोषणा के अनुरूप आधारभूत संरचना पर पांच वर्षो में पूरी तरह फोकस करना चाहती है। दूसरी समिति में कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री, कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री, श्रम राज्य मंत्री एवं आवास एवं शहरी विकास राज्य मंत्री का शामिल होना भी काफी कुछ कहता है।
केवल इन मंत्रियों की क्षमता और समझ के लिए ही इन्हें समिति में शामिल नहीं किया गया है। मानव संसाधन और कौशल विकास की योग्य युवा वर्ग के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी तरह कृषि और ग्रामीण विकास के कार्यक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था के रीढ़ साबित हो सकते हैं।
देश की आर्थिक नियति बहुत कुछ इन समितियों की अनुशंसाओं पर निर्भर करेगी। विश्व के सर्वाधिक तेजी से विकसित होने वाले देश का स्थान बनाए रखना निश्चय ही इस समय मोदी सरकार की प्रमुख चुनौती दिख रही है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के समस्त मूलाधार मजबूत है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित समितियां इसे तीव्र गति देने का रास्ता बनाने वाली साबित होगी।
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