‘बदला’ मंत्रिमंडल
बिहार मंत्रिमडल विस्तार में केवल जद (यू) के नेताओं को मंत्री बनाया जाना ऐसी घटना है, जिसे राजनीतिक नजरिए से ही देखा जाएगा।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल में जद (यू) का प्रतिनिधित्व नहीं है। जैसा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि सभी साथी दलों को एक-एक मंत्रीपद का प्रस्ताव दिया गया जो हमें को स्वीकार नहीं था। हम केवल प्रतीकात्मक रूप में मंत्रिमंडल में नहीं रहना चाहते।
हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया हमारे बीच कोई मतभेद नहीं है, हम पूरी तरह सरकार के साथ हैं। बावजूद इसके जिन्होंने जनता दल (यू) की बैठक पर नजर रखी उनको पता है कि उसमें किस तरह का वातावरण था। वैसे यह भी सच है कि जद (यू) में भी इस बात पर एक राय नहीं थी कि अगर एक से ज्यादा मंत्रीपद दिया जाता है तो किसे बनाया जाए। इसलिए तत्काल इस विषय को भविष्य के लिए छोड़ दिया गया है।
नीतीश के राजनीतिक व्यवहार में साथ रहते हुए भी समय-समय पर अपने को कुछ मुद्दों पर अलग दिखाना और अपनी अहमियत प्रदर्शित करते रहने से देश वाकिफ है। इसलिए जदयू के आठ मंत्रियों को शपथ दिलाने के कदम को इसका प्रकटीकरण माना जा सकता है। हालांकि उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी स्पष्ट किया कि भाजपा और जदयू में किसी तरह का मतभेद नहीं है।
कहा है कि अगले विस्तार में भाजपा के मंत्री भी शामिल होंगे। पता नहीं अगला विस्तार कब होगा? नीतीश ने कहा कि गठबंधन में पहले से तय हो जाता है कि किस पार्टी के कितने मंत्री बनेंगे। यह ठीक है, पर जैसी सूचना है इस समय जदयू कोटे से केवल पांच रिक्तियां थीं। ऐसे में आठ क्यों बनाया गया? इसके पीछे किसी न किसी तरह का राजनीतिक संदेश देने की मंशा अवश्य है।
हालांकि इससे नहीं मान लेना चाहिए कि राजग बिहार में फिर से टूट जाएगा और नीतीश अलग हो जाएंगे। उन्हें पता है कि एक बार गलती करने का क्या परिणाम आया था। भाजपा के साथ सरकार चलाने से लेकर नेताओं के साथ परस्पर व्यवहार में वे ज्यादा सहजता महसूस करते हैं। इसलिए गठबंधन टूटने की कोई संभावना दूर-दूर तक नहीं है। पर केंद्र सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के तुरंत बाद ऐसा करके उन्होंने भाजपा नेतृत्व को संदेश दिया है कि हमें नजरअंदाज नहीं कर सकते। देखना है कि भाजपा का कें द्रीय नेतृत्व इसे किस तरह लेता है?
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