फिर नक्सली हमला
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में माओवादियों द्वारा किए गए भीषण हमले के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं।
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किंतु इस रक्तरंजित घटना से साफ हो गया है कि काफी हद तक कमजोर किए जाने के बावजूद माओवादी अभी भी कुछ बड़े हमले करने की क्षमता रखते हैं। आखिर विशेष पुलिस बल के 15 जवानों का शहीद होना सामान्य घटना नहीं है। शहीद हुए जवान पुलिस की सी-60 फोर्स के कमांडो थे, जिन्हें विशेष तौर पर माओवादियों से निपटने के लिए ही गठित किया गया था।
इनका प्रशिक्षण उसी अनुसार होता है। ध्यान रखिए, ये जवान सामान्य गश्ती पर नहीं थे। यह क्विक रिस्पांस दल था, जो उन माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने निकला था, जिन्होंने कुरखेड़ा तहसील के दादापुरा गांव में 36 वाहनों को आग लगा दिया था। कहा जा रहा है कि ये कमांडो माओवादियों का पीछा करते हुए जंबुखेड़ा गांव की एक पुलिया पर पहुंचे, जहां पहले से बिछाए गए विस्फोटकों से विस्फोट कर दिया गया। ऐसा माना जा रहा है कि माओवादियों ने वाहन जलाए तो उसके पीछे एक उद्देश्य यह था कि सी 60 के जवान कार्रवाई के लिए निकलें तो उनको शिकार बनाया जाए। अगर यह सच है तो वे अपनी साजिश में सफल रहे। जाहिर है, यह घटना के सही विश्लेषण न किए जाने के साथ सही खुफिया सूचना न मिलने की परिणति थी।
घटना के बाद सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में अवश्य कुछ माओवादी मारे जाएंगे। हो सकता है कुछ जिन्दा भी पकड़े जाएं। किंतु इससे यह सच नहीं बदल सकता कि गढ़ चिरौली ही नहीं अन्य माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सघन कार्रवाई के बावजूद माओवादी अभी शक्ति संपन्न हैं। माओवादी आम चुनाव में जनता की भागीदारी के हमेशा विरोधी रहे हैं। लोक सभा चुनाव के पहले चरण यानी 11 अप्रैल को गढ़चिरौली-चिमूर सीट के गढ़चिरौली में 72 प्रतिशत मतदान होना उनको नागवार गुजरा था। उसके बाद साफ था कि वो किसी-न-किसी हिंसक घटना को अंजाम देंगे।
माओवादियों ने 9 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में भी विस्फोट किया था, जिसमें स्थानीय भाजपा विधायक भीमा मंडावी और ड्राइवर के साथ उनकी सुरक्षा में तैनात चार जवान भी शहीद हो गए थे। विधायक मंडावी चुनाव प्रचार कर लौट रहे थे। जब-जब चूक हुई है माओवाद अपना खूनी खेल खेलने में सफल रहे हैं। बहरहाल, देश के अलग-अलग क्षेत्रों माओवाद की पूरी शक्ति का आकलन कर उनके अंत के लक्ष्य से अभियान तेज करना होगा।
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