कूटनीतिक विजय
भारतीय संसद, पठानकोट और पुलवामा जैसे बड़े हमलों का मास्टरमाइंड और आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद का सरगना मसूद अजहर अब वैश्विक आतंकी है।
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इस घटना को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। भारत पिछले चार दशकों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने की कोशिश कर रहा था, मगर चीन हर बार अपना वीटो का इस्तेमाल करके नई दिल्ली की कोशिशों पर पानी फेर देता था। इस बार पुलवामा हमले ने पूरे विश्व जनमत को भारत के पक्ष में खड़ा कर दिया। हमले के बाद मार्च दो हजार उन्नीस में फ्रांस, अमेरिका और इंग्लैंड की तरफ से मसूद पर कार्रवाई करने के लिए सुरक्षा परिषद में पेश प्रस्ताव को पंद्रह सदस्यीय परिषद के चौदह देशों ने समर्थन किया था। बावजूद इसके चीन ने तकनीकी बाधा का हवाला देकर प्रस्ताव के विरुद्ध वीटो लगा दिया था, लेकिन फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैंड सहित छोटे देशों जिनमें सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया भी शामिल था, ने चीन पर भारी दबाव बनाया।
चीन को इस दबाव के आगे समर्पण करना पड़ा और उसने अपना वीटो हटाकर प्रस्ताव का समर्थन कर दिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा मसूद को ऐसे समय में वैश्विक आतंकवादी घोषित किया गया है, जब भारत में लोक सभा चुनाव हो रहे हैं। जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी इसका श्रेय लेने की कोशिश करेंगे। संभव है कि उन्हें इस घटना का चुनावी लाभ भी मिले, परंतु वास्तव में अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित किया जाना प्रतीकात्मक भर ही है। हाफिज सईद भी पाकिस्तानी आतंकी है और उसे भी वैश्विक स्तर पर आतंकवादी घोषित किया गया है। मगर वह पाकिस्तान में खुलेआम घूमता है और भारत के खिलाफ आतंकवादी कार्रवाइयों को बढ़ावा देता है। दो हजार आठ में मुंबई हमले में इसकी भूमिका थी। वास्तव में आतंकवादियों को प्रतिबंधित सूची में डालने से सीमा पार से होने वाली घटनाओं में मामूली कमी हुई है। यह सच है कि भारत के पास पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई का सीमित विकल्प है। उसके खिलाफ सैनिक कार्रवाई इसलिए नहीं हो सकती क्योंकि वह भी परमाणु संपन्न देश है। फिर भी भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाइयों को बंद करने के लिए नई दिल्ली को इस्लामाबाद पर कूटनीतिक दबाव बनाए रखना चाहिए।
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