माल्या का ऑफर
विजय माल्या द्वारा फिर एक बार सोशल मीडिया के माध्यम से बैंकों का बकाया लौटाने का प्रस्ताव किया गया है।
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प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना चाहिए या नहीं, इस पर भारत में एक राय बनाना कठिन है। सामान्य बुद्धि तो यही कहता है कि कोई बकायेदार बैंकों को उनकी राशि लौटाने को तैयार है तो उसे तुरंत स्वीकार करना चाहिए। आखिर, सारे मुकदमे का अंतिम उद्देश्य तो अंतत: बकाये की वापसी है। सजा की मांग भी न्यायालय में इसीलिए होती है कि इस व्यक्ति ने बैंकों के साथ धोखाधड़ी की है। माल्या लंबे समय यह पेशकश कर रहे हैं, लेकिन न किंगफिशर एअरलाइंस को कर्ज देने वाले बैंकों का कंर्सोटियम कोई उत्तर देता है, और न ही सरकार। सरकार के साथ समस्या है कि अगर माल्या के प्रस्ताव पर विचार करने का भी संकेत देती है, तो उसे व्यापक राजनीतिक विरोध का सामना करना होगा। वैसे भी जांच एजेंसियों ने उस पर धोखाधड़ी से लेकर धनशोधन आदि का आरोप लगाया हुआ है। इन मामलों का निपटारा न्यायालय में ही हो सकता है। कहा जा सकता है कि प्रत्यर्पण की संभावना को देखते हुए माल्या अपने बचाव के लिए ऐसी पेशकश कर रहा है।
उसे पता है कि आगामी दिनों में उसे लंदन से भारत प्रत्यर्पित किया जा सकता है। बावजूद इसके हमारा मानना है कि भारत के करदाताओं की धनवापसी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए। वैसे माल्या ने जेट एअरवेज सहित अन्य कई बातें कही हैं, जिन पर अलग नजरिए से विचार करने की आवश्यकता है। आखिर, जेट जैसी विमानन कंपनियों के संकट में आने के क्या कारण हैं? कई विमानन कंपनियां भारत में संकटग्रस्त और बंद हो चुकी हैं। किंगफिशर संकट का शिकार क्यों हुई? इस पर न गंभीरता से विचार हुआ और न उसे बचाने की कोशिश ही। यही जेट एअरवेज के साथ हो रहा है। हम दुनिया में संदेश देना चाहते हैं कि भारत हर तरह के व्यापार करने के लिए अनुकूल जगह है, तो हमें कंपनियों के संकट से निपटने की अपनी सोच और व्यवहार में भी बदलाव लाना होगा। फलती-फूलती कंपनी भी संकट का शिकार हो सकती है। उस समय संकट से उबारने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता होती है। यहां कंपनी के मालिक से लेकर उसके प्रबंधन तक को खलनायक साबित करने में ही पूरी ऊर्जा लग जाती है। घपलेबाजों तथा भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बिल्कुल शून्य सहिष्णुता की नीति होनी चाहिए लेकिन कंपनियों को उबारने की भी सामानांतर कोशिशें जरूरी हैं।
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