दक्षिणमुखी यात्रा
कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की उम्मीदवारी को लेकर तस्वीर साफ कर दी है कि वह उत्तर प्रदेश की अमेठी के अलावा केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ेंगे।
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राहुल गांधी दो लोक सभा सीटों से चुनाव लड़ कर नई राजनीतिक परम्परा नहीं स्थापित कर रहे हैं। उनकी दादी इंदिरा गांधी और मां सोनिया गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुलायम सिंह, लालू प्रसाद और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ चुके हैं। बावजूद इसके भाजपा राहुल गांधी को निशाना बना रही है, जो सर्वथा अनुचित है। कहा जाता है कि आम जनता की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर होती है, लेकिन इतनी भी नहीं होती कि वह भूल जाए कि 2014 के चुनाव में नरेन्द्र मोदी गुजरात के बड़ौदा और उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चुनाव लड़े थे। तब किसी ने नहीं कहा था कि हार के डर से वह दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के इस बयान का क्या अर्थ निकाला जाए कि अमेठी में हार की आशंका देख राहुल केरल भाग गये हैं। दरअसल, कांग्रेस अपने इस फैसले को दक्षिण भारत में अपने खोये हुए जनाधार को वापस पाने की कोशिश के तौर पर देख रही है। पार्टी की केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक की प्रदेश इकाइयां राहुल गांधी को यहां से चुनाव लड़ाने की मांग कर रही थीं।
केरल की वायनाड सीट तमिलनाडु और कर्नाटक के सीमावर्ती क्षेत्रों से जुड़ी हुई है। राहुल गांधी के यहां से चुनाव लड़ने का असर उत्तरी-पश्चिमी तमिलनाडु और कर्नाटक के दक्षिणी हिस्से पर विशेष तौर पर पड़ेगा। पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा और संगठन को मजबूती मिलेगी। 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई वायनाड लोक सभा सीट पर 2009 और 2014 में हुए दो चुनावों में कांग्रेस के एमआई शानवास (अब दिवंगत) वाममोच्रे को हराकर विजयी रहे हैं। इस कारण और मतदाताओं के लिहाज से राहुल के लिए सीट सुरक्षित मानी जा रही है। लेकिन अब चूंकि स्वयं राहुल मैदान में हैं तो माकपा उनकी उम्मीदवारी को अपने गठबंधन के विरुद्ध एक चेतावनी मान रही है। वामदल अब केवल केरल तक सिमट कर रह गए हैं। इसलिए उन्हें राहुल के लड़ने से अपने वजूद पर खतरा दिख रहा है। लेकिन अगर दो सीटों चुनाव लड़ना अभी वैध है तो फिर राहुल पर ही सवाल क्यों?
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