सही निर्णय

Last Updated 27 Mar 2019 02:10:01 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनावों के दौरान रोड शो और बाइक रैलियां निकालने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी याचिका को अस्वीकार करना निस्संदेह तार्किक और व्यावहारिक है।


सही निर्णय

चुनाव शुष्क राजनीतिक प्रक्रिया ही नहीं, लोकतंत्र का उत्सव भी है। वैसे ही चुनाव आयोग के अनेक कदमों से इसकी उत्सवधर्मिंता काफी कम हो गई है। हालांकि सारे कदम चुनाव को स्वच्छ, निष्पक्ष तथा धनबल से मुक्त करने के लिए उठाए गए पर दूसरी ओर उससे चुनाव अभियानों का आनंद भी कम हुआ है। रैलियां या रोड शो सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया के अंग हैं। हम मानते हैं कि इसमें दूसरे दलों को डराने या कई बार अभद्रता का भाव भी रहता है, किंतु उससे निपटने का तरीका दूसरा होना चहिए।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि इस तरह के रोड शो और बाइक रैलियां आयोग के निर्देशों का उल्लंघन हैं, इनसे होने वाले ध्वनि और वायु प्रदूषण से पर्यावरण को नुकसान होता है, और यातायात की समस्या पैदा होती है। अगर यह आयोग के निर्दशों का उल्लंघन है तो इसका फैसला करने में वह सक्षम है। चुनाव के दौरान आयोग के पास व्यापक शक्तियां होती हैं। रोड शो और राजनीतिक जुलूसों के बारे में निर्वाचन आयोग ने निर्देश दिया था कि इनमें शामिल वाहनों का पंजीकरण होना चाहिए और ऐसे काफिले में दस से अधिक वाहन नहीं होने चाहिए।

आयोग के इस निर्देश पर भी प्रश्न उठाए गए थे। एक समय था जब राजनीतिक दल पैदल जुलूस निकालते थे। उसके बाद पैदल और साइकिल का जमाना आया। अब बाइक एवं मोटर वाहन का समय है। विकास के साथ साधन बदलते ही हैं। आयोग का फोकस अनावश्यक खर्च पर रोक लगाने का है और उसी तहत ये कदम उठाए जाते हैं। अगर नामांकन और सभाओं आदि में निर्धारित संख्या से ज्यादा वाहन होते हैं तो आयोग स्वयं कदम उठाता है। इसके लिए उच्चतम न्यायालय को अलग से फैसला देने की आवश्यकता है भी नहीं।

जहां तक पर्यावरण को नुकसान का प्रश्न है तो इसका जिम्मेवार नागरिक होने के नाते हम सबको ध्यान रखना ही चाहिए। हालांकि इसके आधार पर विचार किया जाए तब तो कोई जुलूस या रोड शो हो ही नहीं। यह सब लोकतांत्रिक समाज का स्वाभाविक चरित्र है। अनावश्यक, भौंडे तथा किसी को भयभीत करने वाले प्रदशर्नों को छोड़कर ऐसे हर जुलूस और रोड शो की आजादी बनी रहनी चाहिए।



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