कोटे पर कोर्ट की रोक
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण के आदेश पर रोक लगाना प्रदेश की कमलनाथ सरकार के लिए बड़ा झटका है।
कोटे पर कोर्ट की रोक |
कमलनाथ सरकार ने पिछले आठ मार्च को एक अध्यादेश के जरिये अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। हालांकि न्यायालय ने इसे अंतिम तौर पर खत्म नहीं किया है। उसने यायिकाकर्ताओं एवं सरकार दोनों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। किंतु न्यायालय के तेवर को देखते हुए इसका रास्ता आसान नहीं लगता। ऐन चुनाव के पूर्व कमलनाथ सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग को लुभाने के लिए आरक्षण का दांव खेला था। न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने अपनी टिप्पणी में साफ कहा है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण को मिलकार किसी सूरत में सीमा 50 प्रतिशत को पार नहीं करनी चाहिए। मध्य प्रदेश में इस समय अनुसूचित जाति के लिए 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति के लिए 20 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है।
न्यायालय ने कहा है कि इसमें बढ़ोत्तरी नहीं की जा सकती। चूंकि न्यायालय ने प्रदेश सरकार के कदम को असंवैघानिक तक कह दिया है, इसलिए यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि आसानी से उसका विचार बदल जाएगा। हालांकि मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि उनकी सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने को लेकर प्रतिबद्ध है और न्यायालय में अपना पक्ष रखेगी किंतु इसे तत्काल राजनीतिक वक्तव्य के अलावा कुछ नहीं माना जा सकता है। स्पष्टत: यह निर्णय पिछड़ों के कल्याण से ज्यादा राजनीतिक लाभ पर केंद्रित था। विधानसभा चुनाव में सवर्ण जातियों के एक वर्ग ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को संसद द्वारा पलटने के निर्णय के विरु द्ध कांग्रेस को मत दिया या नोटा का बटन दबाया था। यह स्थिति स्थायी नहीं हो सकती। जीत-हार के बीच इतनी पतली रेखा है, जो कभी भी खत्म हो सकती है। सो, कमलनाथ कई कदमों से कांग्रेस के पक्ष में मजबूत सामाजिक समीकरण खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। उच्च न्यायालय तो संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में ही कोई फैसला दे सकता है। कमलनाथ को दोनों मायनों में इसे सही साबित करना होगा। हां, मामले की जटिलता को देखते हुए लगता नहीं कि लोक सभा चुनाव तक इसका निपटारा हो पाएगा।
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