सर्वदलीय एकजुटता
सर्वदलीय बैठक से निकला संदेश देश के लिए अत्यंत ही राहतकारी है। आम धारणा के विपरीत पार्टयिों ने या तो खुलकर कहा कि पुलवामा हमले मामले में हम सेना और सरकार के साथ हैं या कुछ ने न बोलने की रणनीति अपनाई।
सर्वदलीय एकजुटता |
राजनीति के तीखे विभाजन और खासकर आम चुनाव के पूर्व के वातावरण में यह सामान्य बात नहीं है। वास्तव में हमले के बाद से ही हमारे राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व ने पूरी जिम्मेवारी का परिचय दिया है।
एक दिन पहले तक का संतप्त और हमला-प्रति हमला का वातावरण एकजुटता में परिणत हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपील की थी कि ऐसे समय हमें छींटाकशी से बचनी चाहिए। जाहिर है, इसके बाद सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। अगर सारे दल उसके साथ हैं और सबने कार्रवाई के लिए सहमति दी है तो उसे आगे बढ़ना चाहिए। इसके एक दिन पहले सुरक्षा मामले की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक हुई थी।
सरकार की ओर से सभी दलों के नेताओं को उसमें लिए गए निर्णयों से अवगत कराया गया होगा। उनसे वे सूचनाएं भी शेयर की गई होंगी जो इस हमले के बारे में सरकार को प्राप्त हुई थीं। चूंकि इस बैठक में सुरक्षा बलों के शीर्ष अधिकारी भी शामिल थे, इसलिए उन्होंने भी अपनी योजना या सोच से नेताओं को अवगत कराया होगा। ऐसे मामलों में भविष्य की रणनीति को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। पर यह अच्छा है कि सरकार ने आगे बढ़ने के पहले सभी दलों का विश्वास हासिल करने का कदम उठाया।
यह सिलसिला आगे भी जारी रहनी चाहिए। कोई निर्णय हो तुरंत सर्वदलीय बैठक बुलाकर उसकी जानकारी देनी चाहिए और उनका सुझाव भी मांगना चाहिए। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और चुनावी प्रतिस्पर्धा अपनी जगह है, लेकिन देश की रक्षा-सुरक्षा के प्रति राजनीति हमेशा आत्मघाती होती है। इस बैठक से केवल पाकिस्तान नहीं, दुनिया को यह संदेश गया है कि भारत की सारी पार्टयिां आतंकवाद से मुकाबले को तैयार हैं।
इससे अन्य देशों को भी अपनी नीति-निर्धारण में सुविधा होगी। अब मुख्य सवाल आगे की कार्रवाइयों का है। सभी दलों को पता है कि जम्मू-कश्मीर केन्द्रित सीमा पार आतंकवाद के विरु द्ध लड़ाई न आसान है और न एक-दो दिनों इस पर विजय पाई जा सकती है। पर देश उम्मीद करता है कि चाहे कार्रवाइयां जितनी लंबी खींचे, देश को उस दौरान जितनी भी क्षति हो राजनीतिक दल संतुलन और एकता बनाए रखेंगे।
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