अस्वीकार्य राजनीति
कर्नाटक की राजनीति में इस समय जो कुछ घटित होता दिख रहा है, वह चिंताजनक है। हालांकि कर्नाटक के लिए यह कोई नई बात नहीं है।
अस्वीकार्य राजनीति |
पिछले साढ़े तीन दशक में वहां कई राजनीतिक उठापटक हुई हैं, और विधायकों के साथ बड़े नेताओं तक ने पाला बदला है। इस समय वैसे भी एच. डी. कुमारस्वामी की सरकार बहुमत की अत्यंत पतली रस्सी पर टिकी है। भाजपा बहुमत से थोड़ा ही दूर है।
इसमें कोई विधायक विपक्ष के किसी नेता से मिले या बातचीत करे तो भी आशंकाएं उठने लगती हैं। इस समय विचित्र स्थिति है। भाजपा विधायकों की बड़ी संख्या को देश की राजधानी दिल्ली के निकट मेवात में रोका गया है, तो कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कुछ विधायक गायब हैं, और उनके मुंबई में होने की खबर है। मुंबई में भाजपा-शिवसेना की सरकार है, और वहां कांग्रेस के विधायकों के होने का राजनीतिक अर्थ निकाला जाना स्वाभाविक है।
भाजपा आरोप लगा रही है कि कुमारस्वामी कांग्रेस के समर्थन के बावजूद उनके विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, तो कांग्रेस कह रही है कि भाजपा उनके विधायकों को अपने साथ लाकर बहुमत जुटाने की जुगत में है। भाजपा चुनाव परिणामों में बहुमत से थोड़ा ही पीछे रह गई थी तथा येदियुरप्पा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बावजूद इस्तीफा देने को मजबूर हुए थे। भाजपा को यह टीस तो है कि वह सबसे बड़ा दल होने के बावजूद सरकार से बाहर है, और एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाली पार्टयिां एक होकर सरकार चला रही हैं। उस सरकार में असंतोष भी है। अनेक विधायकों को लगता है कि उन्हें मंत्री न बनाया जाना नाइंसाफी है। हो सकता है, वह पाला बदलना चाहते हों।
किंतु भाजपा उन्हें ऐसा करने को प्रोत्साहित करे, यह उचित नहीं है। यह राजनैतिक अनैतिकता होगी। इसी तरह कुमारस्वामी अपनी ताकत बढ़ाने के लिए भाजपा विधायकों को किसी पद का लालच दे रहे हैं, तो यह भी अस्वीकार्य है। कुमारस्वामी कांग्रेस के व्यवहार के प्रति कई बार अपना दुख सार्वजनिक रूप से प्रकट कर चुके हैं।
जद-स का कांग्रेस के साथ गठबंधन स्वाभाविक नहीं है किंतु कांग्रेस पर निर्भरता काफी कम करने के लिए कुमारस्वामी को भाजपा विधायकों में बड़ी सेंध लगानी होगी। संभव है कि स्थानीय राजनीति में इसके खिलाफ जनविरोध सामने नहीं आएं, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। दोनों पक्ष राजनीतिक नैतिकता का परिचय दें, यही देश चाहेगा।
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