घेरे में वाड्रा
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज धनशोधन के नये मामले से रॉबर्ट वाड्रा की परेशानी बढ़ सकती है। उनके करीबी मनोज अरोड़ा के खिलाफ गैर-जमानती वारंट की न्यायालय में अपील भी उनकी चिंता बढ़ाने वाली है।
घेरे में वाड्रा |
हालांकि ऐसे हर मामले को राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा जाता है। ऐसे मुकदमों की खबरें आती रहती हैं। इस बार वाड्रा एवं उनसे कथित तौर पर जुड़ी एक कंपनी के खिलाफ धनशोधन कानून के तहत मामला दर्ज हुआ है। केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत दर्ज प्राथमिकी को आधिकारिक तौर पर प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है।
गत दिसम्बर में वाड्रा से जुड़े तीन लोगों पर ईडी की छापेमारी के बाद मामला दर्ज हुआ है। माना जा रहा है कि इसमें कुछ जान है। ये छापे रक्षा सौदों में कुछ संदिग्धों के कथित कमीशन प्राप्त करने और विदेशों में मौजूद अवैध संपत्तियों की जांच के संबंध में मारे गए थे। उनमें वाड्रा के संबंध में सूत्र मिले तो मामला दर्ज हुआ। बीते सितम्बर में हरियाणा पुलिस ने भी प्राथमिकी दर्ज की थी। इसका संबंध 2008 में हरियाणा के गुरुग्राम में भूमि सौदों में वित्तीय व अन्य गड़बड़ियों संबंधी मामले से है।
इसके अनुसार वाड्रा से जुड़ी कंपनी स्काइलाइट हॉस्पिटेलिटी प्रा. लि. ने 2008 में ओमकारेर प्रॉपर्टीज से 7.50 करोड़ रु पये में गुरु ग्राम के सेक्टर 83 में 3.5 एकड़ जमीन खरीदी थी। बतौर मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव से कॉलोनी के विकास के लिए व्यावसायिक लाइसेंस खरीद कर स्काइलाइट हॉस्पिटेलिटी ने जमीन डीएलएफ को 58 करोड़ रु पये में बेच दी थी यानी 50 करोड़ रु मुनाफा कमाया। बदले में राज्य सरकार ने नियमों का उल्लंघन करते हुए गुड़गांव के वजीराबाद में डीएलएफ को 350 एकड़ जमीन आवंटित की जिससे उसे 5,000 करोड़ रुपये का लाभ हुआ।
जांच का विषय है कि क्या इन सौदों में धनशोधन नहीं हुआ। दूसरे मामले में अरोड़ा से ईडी वाड्रा की देश-विदेश की संपत्तियों के बारे में पूछताछ करना चाहता है। आरोप है कि लंदन के 12, ब्रायनस्टन स्क्वायर बंगले का मालिकाना वाड्रा के पास है। उसे खरीदने के लिए संयुक्त अरब अमीरात से धन आया था। हमारा मानना है कि एजेंसियां वाड्रा के खिलाफ आरोपों पर जांच तीव्र करके तार्किक परिणामों तक पहुंचें अन्यथा सब कुछ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित रह जाएगा।
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