लीक पर डांट-डपट
सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई अधिकारियों के बारे में जो टिप्पणियां की हैं वह बिल्कुल स्वाभाविक है और इससे उन सबकी आंखें खुलनी चाहिए जो पद पर रहते हुए गोपनीय जानकारियां लीक करके एक-दूसरे के चरित्रहनन में लगे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय |
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का यह कथन वाकई विचारणीय है, जो रिपोर्ट उनके पास सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा ने सिलबंद लिफाफे में जमा की वह मीडिया में कैसे चला गया? इसी तरह से सीबीआई के डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा की याचिका के अंश समाचारपत्रों में प्रकाशित होना कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश इससे ज्यादा और क्या कह सकते थे आप में से कोई डिजर्व नहीं करता कि हम आज आपके मामलों की सुनवाई करें। फली एस नरीमन जैसे वरिष्ठ वकील को यदि कहना पड़ा है, हमारे पूरे कॅरियर में ऐसा कभी नहीं हुआ और इसका मुझे खेद है तो जाहिर है, स्थिति बिल्कुल गंभीर है। वस्तुत: सर्वोच्च न्यायालय की मुख्य चिंता संस्थान की प्रतिष्ठा को लेकर है। आपस की लड़ाई में स्वयं को पाक साफ साबित करने या जनता के बीच अपनी छवि चमकाने के लिए इस तरह जानकारियां लीक करना न केवल आपत्तिजनक है, बल्कि नियम विरु द्ध भी। देखना होगा कि न्यायालय आगे क्या रुख अपनाता है?
न्यायालय ने स्पष्ट कह दिया है कि हम सीबीआई की एक संस्थान के रूप में गरिमा बरकरार रखने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं और इसी कारण अभी तक की जांच को गोपनीय रख रहे हैं। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि गोपनीय रिपोर्ट लीक होने से साफ है, न्यायालय के आदेशों का सम्मान नहीं किया जाता। जिसे न्यायालय अपने सम्मान के विपरीत मान रहा हो वैसी भूमिका अगर सीबीआई के वे अधिकारी निभा रहे हैं, जिनको अपने को सही साबित करना है तो यह अत्यंत गंभीर मामला है। एक डीआईजी अपने स्थानांतरण के विरोध में न्यायालय से गुहार लगाने आता है और मीडिया में सरकार के मंत्री से लेकर राष्ट्रीय सलाहकार तक को लपेट लेता है तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अच्छा है इस मामले के कारण न्यायालय के ध्यान में भी ये दुरावस्थाएं आ गई हैं। हम चाहेंगे कि न्यायालय स्पष्ट निर्देश जारी करे ताकि ये अधिकारी अपनी सीमाएं समझें और सुर्खरू कहलाने के लिए मीडिया का उपयोग न करें।
Tweet |