सुलह की तरफ
यह खबर यकीनन सुकून देने वाली है कि सरकार और रिजर्व बैंक के बीच मतभेद और तनाव का माहौल खत्म हो रहा है।
सुलह की तरफ |
हालांकि नीतियों को लेकर सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच मतभेद और असहमति अस्वाभाविक नहीं। सरकार चुनाव में किए गए अपने वायदों से बंधी होती है और उसे जनता की समस्याओं का ध्यान रखते हुए कई ऐसे कदम उठाने होते हैं, जो रिजर्व बैंक की नजर में वित्तीय अनुशासन के विपरीत भी हो सकता है। हमारे यहां का वातावरण ऐसा हो गया है कि इन मतभेदों को भी सही परिप्रेक्ष्य में देखने की बजाय सनसनीखेज बना दिया जाता है।
रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने जो भी भाषण दिया था वह उनका मत था जिसे रखने का उनको पूरा अधिकार था, किंतु लोक कल्याणकारी राज में सरकारें केवल शुष्क वित्तीय अनुशासन के नियमों से नहीं चल सकती। वित्त का ध्यान तो रखना ही है, लेकिन जन कल्याण संबंधी कदमों को रोकना कतई उचित नहीं होता। इसमें बीच का रास्ता निकालने की आवश्यकता होती है। मसलन, रिजर्व बैंक के पास पूंजी का कितना आरक्षित भंडार रहना चाहिए, इस मुद्दे को एक विशेषज्ञ समिति के हवाले कर दिया जाएगा। उसके सदस्यों के बारे में सरकार और रिजर्व बैंक दोनों मिलकर फैसला करेंगे।
दूसरे, छोटे उद्योगों के फंसे कर्ज के पुनर्गठन के मसले पर केंद्रीय बैंक खुद विचार करेगा। रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की सोमवार की बहुचर्चित बैठक नौ घंटे तक चली। मतभेद के ये दो बड़े मुद्दे थे। रिजर्व बैंक एक निश्चित सीमा तक पूंजी रखने पर अड़ा था, जबकि सरकार का कहना था कि लघु एवं मध्यम उद्योगों का कर्ज देने में उदारता दिखानी होगी। रिजर्व बैंक का पूंजी आधार इस समय 9.69 लाख करोड़ रुपये है।
सरकार की ओर से रिजर्व बैंक के स्वतंत्र निदेशक नियुक्त किए गए एस. गुरु मूर्ति चाहते हैं कि इस कोष को नियंत्रण मानकों के अनुरूप कम किया जाना चाहिए। वित्त मंत्रालय भी उनसे सहमत है। तो विशेषज्ञ समिति की अनुशंसाओं पर सब कुछ निर्भर करेगा। बहरहाल, केंद्रीय बैंक नकदी की मौजूदा स्थिति और भविष्य में टिकाऊ तरलता की जरूरत को देखते हुए मुक्त बाजार परिचालन के तहत सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदने के लिए 80 अरब खर्च करेगा। अच्छा है बैंक और सरकार दोनों देश की माली हालत, विकास की आवश्यकताओं और कल्याण कार्यक्रमों के बीच संतुलन और समन्वय से काम करें।
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