स्कॉलर बना आतंकी
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में शोधरत स्कॉलर मन्नान बशीर वानी के आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन में शामिल होने की खबर चौंकाने के साथ-साथ चिंता भी पैदा करती है.
स्कॉलर बना आतंकी |
हालांकि पिछले कुछ सालों में पढ़े-लिखे और उच्च शिक्षा पा रहे या पा चुके युवा आतंक के रास्ते पर तेजी से बढ़े हैं. अब पहले वाली धारणा कमजोर होती जा रही है कि गरीब, कम पढ़ा-लिखा या बेरोजगार युवा ही आतंकवादी बनता है. भारत में आतंक के ऐसे सैकड़ों नाम हैं जो न केवल उच्च शिक्षित थे बल्कि कई तो इंजीनियर और डॉक्टरी के पेशे में थे.
हिजबुल का आतंकी रहा बुरहान वानी भी एएमयू से रिसर्च कर रहा था. वैसे, आतंक के खूनी चक्रव्यूह में सिर्फ भारत के बच्चे ही नहीं फंसे हैं बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और आश्चर्यजनक ढंग से बांग्लादेश के युवा भी हैं. पिछले साल (2016) में ढाका के एक रेस्तरां में मार गिराए गए आतंकियों में सभी रईस घरों के और शरीफ बच्चे थे. अमेरिकी जांच एजेंसी के मुताबिक अमेरिका पर 9/11 हमले में शामिल दो तिहाई आतंकवादी शिक्षित थे.
आंकड़ों पर भरोसा करें तो विश्व भर में करीब 62 फीसद आतंकवादी न केवल शिक्षित हैं बल्कि उनकी फैमिली बैकग्राउंड भी काफी अच्छी है. तो क्या पूरा परिदृश्य सरकार और जांच एजेंसियों के लिए सिरदर्दी है? ‘आप्ॉरेशन आलआऊट’, युवाओं संग सरकार व अन्य एजेंसियों का मेलजोल और केंद्र सरकार द्वारा दिनेर शर्मा को वार्ताकार नियुक्त करने की रणनीति भी फेल होती दिख रही है. आखिर सरकार के स्तर पर कमी कहां रह गई है?
अगर सख्त सैन्य कार्रवाई भी घाटी में आतंकवादियों और आक्रोशित युवाओं को हथियार नहीं उठाने को प्रेरित कर पा रही है तो निश्चित तौर पर सरकार को कुछ अलहदा सोचना होगा. अमन बहाली के अभी तक जितने भी औजार आजमाए गए हैं, लगता है सब-के-सब सिफर साबित हुए हैं. खासकर युवाओं के ब्रेनवाश को रोकने की चुनौती सबसे बड़ी है.
सुरक्षा महकमे की एक बड़ी चुनौती सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने की है, जहां से युवा आतंक के खूनी खेल में जाने के लिए सबसे ज्यादा प्रेरित होते हैं. ऐसे देखा गया है कि जहां इंटरनेट की उपलब्धता है, वहां आतंकी संगठन आईएस का फैलाव ज्यादा हुआ है. सो, मनान वानी का आतंकी संगठन में शामिल होना इस बात का सबूत है कि सतही तरीके से अमन बहाली के उपाय कहीं आगे चलकर जी का जंजाल न बन जाएं.
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