नीतीश का 'तीर'
चुनाव आयोग द्वारा लंबी सुनवाई के बाद जनता दल यूनाइटेड (जद यू) के चुनाव चिह्न 'तीर' को नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जद यू को देने का फैसला किया.
नीतीश कुमार को मिला तीर का निशान (फाइल फोटो) |
इस फैसले से लंबे वक्त तक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद और ऊंच-नीच के साक्षी और साथी रहे शरद यादव को जोर का झटका लगा है. यह इस मायने में शरद यादव की सियासी कॅरियर के लिए बड़ी चोट है क्योंकि अब शरद को एक तो खुद का रास्ता तलाशना होगा वहीं आगे चलकर जद यू उन्हें पार्टी की राज्य सभा सदस्यता से हटाने के लिए जोर-शोर से सक्रिय होगी.
भारतीय राजनीति के मंच पर 45 साल तक समाजवादी आंदोलन के स्तंभ के तौर पर शरद यादव की पहचान रही है. इस बेहद लंबी और संघर्ष के दिनों में उन्होंने समाजवादी राजनीति और आंदोलनों को नजदीक से देखा, समझा और जाना है. दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने हर एक पल को जिया है और उसके प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तरीके से गवाह भी रहे हैं.
बिहार में महागठबंधन के टूटने के बाद से ही शरद नीतीश के खिलाफ आक्रामक और बागी तेवर अपनाए हुए थे. महागठबंधन की टूट और इसके लिए भाजपा से ज्यादा नीतीश कुमार पर हमलावर रहने के पीछे उनकी मंशा पार्टी के उन नेताओं और कार्यकर्ताओं को संदेश देना था कि अब वो जद यू में ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं और आगे का सियासी सफर किस तरह का होगा और उन लोगों की राजनीतिक पारी किस करवट लेगी, इसका 'लिटमस टेस्ट' जरूरी है. सो उन्होंने जद यू पर अपना हक जताया और इसे पाने के लिए सारे टोटके अपनाए.
मामला आयोग की चौखट तक गया. और गहन जांच प्रक्रिया, दलीलों और तर्क-वितर्क के आधार पर आयोग ने नीतीश कुमार के पक्ष में फैसला सुनाया. चूंकि, शरद की पहचान एक खांटी समाजवादी नेता की रही है और किसी भी समाजवादी नेता की तरह उन्होंने लगातार कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की. लेकिन अब उनके विचार में कांग्रेस के प्रति लचीलापन यही प्रदर्शित करता है कि वो अब सुविधाभोगी राजनेता हो चुके हैं.
कांग्रेस की जीवनभर लानत-मलामत करने वाले शरद क्या वहां जाएंगे या खुद की पार्टी बनाएंगे; यह देखना बाकी है लेकिन 'आटो रिक्शा' की सवारी से वो कैसे फर्राटे भरेंगे, यह देखना कम रोचक नहीं होगा.
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