निजी क्षेत्र में कोटा नहीं

Last Updated 15 Nov 2017 04:44:41 AM IST

उद्योग चैंबर एसोचैम का मानना है कि निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने से देश में निवेश के माहौल पर विपरीत असर पड़ेगा.


निजी में कोटा नहीं

नोटबंदी तथा आधे-अधूरे जीएसटी की मार से पहले ही जूझ रही अर्थव्यवस्था के लिए यह एक घातक कदम होगा.

उद्योग चैंबर के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था अभी विकास के पथ पर फिर से अपने कदम जमाने की कोशिश कर रही है. लिहाजा, इस वक्त निजी क्षेत्र में आरक्षण जैसा कोई भी राजनीतिक संदेश इसे करारा झटका दे सकता है.

साथ ही, विश्व बैंक द्वारा भारत में व्यवसाय करने की सुगमता को लेकर हाल में जताई गई आशावादिता पर भी इससे कुठाराघात हो सकता है.

गौरतलब है कि सत्तारूढ़ एनडीए के नेताओं समेत कई राजनीतिक दलों ने हाल ही में निजी क्षेत्र में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातीयों के लिए निजी क्षेत्र में रोजगार आरक्षण की मांग की है. केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख राम विलास पासवान ने हाल ही में इसकी मांग की थी.

ऐसी ही मांग कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने पिछले साल की थी कि आरक्षण के दायरे को विस्तारित कर इसे निजी क्षेत्र तक बढ़ा दिया जाना चाहिए. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि देश का विकास जिसमें आर्थिक और सामाजिक दोनों ही विकास शामिल हैं, के लिए आवश्यक है कि समाज के सभी वगरें को साथ लाया जाए. खासकर आर्थिक रूप से पिछड़े एवं वंचित लोगों को बगैर साथ लाए और उन्हें जोड़े, देश का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है.

लेकिन इसके लिए यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इन पिछड़े-वंचित लोगों को समुचित रूप से कौशल विकास, प्रशिक्षण, जरूरी व्यावसायिक शिक्षा मिले, जिनसे वे खुद से अपने पैरों पर खड़ा होने में समर्थ बन सकें, न कि हमेशा आरक्षण के मोहताज बने रहें. अभी देश में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार सृजित किए जाने की आवश्यकता है.

और सरकार को अपना ध्यान उस पर केंद्रित करना चाहिए, न कि वैश्विक और घरेलू निवेशकों को गलत संदेश देना चाहिए. उद्योग चैंबर एसोचैम ने ताकीद की है कि अगर राजनीतिक दलों ने वोट की राजनीति के चक्कर में इस प्रकार के लोक-लुभावन वादे किए तो इसका बहुत बड़ा खमियाजा देश की अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ सकता है.



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