इस हार की धार
मध्य प्रदेश के चित्रकूट विधान सभा उपचुनाव में कांग्रेस की विजय यकीनन भाजपा के लिए एक झटका है.
इस हार की धार |
हालांकि यह सीट पहले कांग्रेस के पास ही थी और उसके विधायक प्रेम सिंह के निधन से यह खाली हुई थी. इस आधार पर भाजपा कह सकती है कि कांग्रेस ने अपनी सीट बचा ली.
किंतु इसका दूसरा पहलू यह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस सीट को प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था और कई सभाएं की थीं. मध्य प्रदेश भाजपा ने इस उपचुनाव को पूरे मनोयोग से लड़ा. इसके बावजूद यहां मिली उसकी पराजय क्या भाजपा या शिवराज के भविष्य का कोई संकेत है? 2013 में भाजपा यहां 10 हजार 970 मतों के अंतर से पराजित हुई थी, जबकि इस बार वह 14 हजार 133 मतों से हारी है. हार का बढ़ा हुआ अंतर भी मायने रखता है.
हम सहसा इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि चौहान का जादू चूक रहा है या उनकी लोकप्रियता कम हो रही है, लेकिन इस पराजय के कुछ तो मायने हैं. प्रदेश में इस समय किसानों का आंदोलन जगह-जगह चल रहा है. कृषि-उपज का मंडियों में उचित मूल्य न मिलने से उनमें निराशा है. सरकार ने भावांतर योजना घोषित की, जिसका उद्देश्य यह था कि जितने में किसान का पैदावार मंडियों में बिकेगा और वह सरकार के घोषित मूल्य से जितना कम होगा, उतनी राशि सरकार किसान के खाते में जमा करा देगी. इस पर घोषणा के अनुरूप अमल नहीं हुआ है.
भाजपा विरोधी शक्तियों को ऐसे मामले पर अपना स्वर तेज करने का मौका मिला है. सरकार की अपनी नीतियों के कारण उन्हें किसानों को लामबंद करने में सफलता मिल रही है. वे सारी शक्तियां चित्रकूट में एकत्रित हो गई थीं, जिनका एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह भाजपा पराजित हो. इसमें उन्हें सफलता मिली. इससे उन शक्तियों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और 2018 में वे भाजपा के विरोध में ज्यादा संगठित होने की कोशिश करेंगी.
अगर शिवराज सरकार ने किसानों के असंतोष को दूर करने के लिए कदम नहीं उठाया और भावांतर योजना को व्यावहारिक जामा नहीं पहनाया तो चित्रकूट के विस्तारित होने की संभावना बढ़ जाएगी. हम यदि इसके पूर्व गुरदासपुर लोक सभा उपचुनाव में कांग्रेस की विजय को मिला दें तो फिर भाजपा के लिए चिंता की बात है. गुरदासपुर तो भाजपा की सीट थी. उस पराजय को भाजपा ने कितनी गंभीरता से लिया इसका पता नहीं है. ये नतीजे भाजपा के लिए मंथन के अवसर हैं.
Tweet |