सबक तो है
पंजाब की गुरदासपुर लोक सभा और केरल की वेंगारा विधानसभा सीट के उपचुनावों के नतीजे कांग्रेस पार्टी के पक्ष में जाने से उसके नेता और कार्यकर्ता दोनों उत्साहित हैं.
सबक तो है |
गुरदासपुर में कांग्रेस के सुनील जाखड़ ने भाजपा उम्मीदवार स्वर्ण सिंह सलारिया को एक लाख 93 हजार 219 वोटों से हराया है. कांग्रेस के लिए यह बड़ी जीत है. इसीलिए कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता इन चुनावों के नतीजों को आगामी गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों पर असर डालने वाला बता रहे हैं. जाहिर है कि किसी भी जनादेश की व्याख्या और विश्लेषण करने का नजरिया अलग-अलग होता है.
लेकिन आम तौर पर यह देखा गया है कि राज्यों में अगर कोई राजनीतिक पार्टी असरदार ढंग से सत्तारूढ़ होती है तो करीब एक-डेढ़ साल तक उसका प्रभाव मौजूद रहता है. लिहाजा, गुरदासपुर में कांग्रेस की जीत को चौंकाने वाला नहीं माना जा सकता. वैसे भी एक-दो उपचुनावों के नतीजों से किसी बड़े राजनीतिक परिवर्तन का निष्कर्ष नहीं निकाला जाना चाहिए. इतना जरूर है कि गुरदासपुर और वेंगारा उपचुनावों से भाजपा को निराशा हुई होगी.
गुरदासपुर में हार के भार अंतर पर भाजपा को मंथन करना चाहिए. फिल्म अभिनेता और भाजपा के नेता विनोद खन्ना ने कांग्रेस से यह सीट छीनी थी. उनके निधन के बाद उनकी पत्नी कविता खन्ना यहां से चुनाव लड़ने की इच्छुक थीं.
अगर भाजपा उनको टिकट देती तो शायद नतीजा कुछ और होता क्योंकि उनके पक्ष में सहानुभूति की लहर का असर होता. केरल की वेंगारा विधान सभा पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन संयुक्त लोकतांत्रिक फ्रंट की जीत से भी भाजपा को निराशा हुई होगी. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वहां की राजनीतिक-संस्कृति में बदलाव लाने के लिए काफी समय से संघषर्शील हैं.
इसी कड़ी में उनने वहां जन रक्षा यात्रा निकाल कर अपनी राजनीतिक मौजूदगी बनाने की कोशिश की थी, लेकिन इस उपचुनाव के नतीजों ने उनकी कोशिशों पर विराम लगा दिया. इसलिए भाजपा को राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण माने जा रहे गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों से पहले अपनी कार्यशैली और राजनीति पर पुनर्विचार करना होगा क्योंकि खासकर गुजरात चुनाव के नतीजे केंद्र की राजनीति को अवश्य प्रभावित कर सकता है. भाजपा के लिए गुरदासपुर सबक है. आवश्यक है कि इन नतीजों को भाजपा ऐसे संकेत के रूप में समझे जो मुस्तैद होने की नसीहत देते हैं.
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