सिरे से लापरवाही
हरियाणा के सिरसा से शुरू हुए संकट के आज सुरसा हो जाने देने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वह केवल और केवल सूबे की भाजपा सरकार है.
सिरे से लापरवाही |
यह कोई नहीं मान रहा है कि खट्टर सरकार को डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम की 25 अगस्त को पंचकूला की सीबीआई अदालत में पेशी पर उनके भक्तों के जमावड़े का पता नहीं रहा होगा. यह भी कि अगर राम रहीम को बलात्कार मामले में सजा देना तो दूर दोषी भी ठहराया गया तो उनके समर्थक हिंसक हो उठेंगे.
फिर किस आधार पर सरकार ने पंचकूला में उनका जमावड़ा रोकने के लिए लगाई गई धारा 144 का मुस्तैदी से पालन नहीं कराया? जो सरकार अपने विरुद्ध कोई रैली रोकने पर डट जाती है तो वहां एक परिंदा तक पर नहीं मारता.
और यहां लाखों डेरा समर्थक मरने तक ऐलान करते रातोंरात पंचकूला पहुंच जाते हैं. अगर खट्टर सरकार ने राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखाई होती और उसके मुताबिक अपने लुंज-पुंज प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त किया होता तो कम से कम संगठित हिंसा-अराजकता को हरियाणा में ही रोका जा सकता था. अब तो इसने पंजाब, उप्र., राजस्थान और दिल्ली तक को अपनी हिंसक जद में ले लिया है. ये दुर्भाग्यपूर्ण हालात तब हैं जबकि हरियाणा के मुख्यमंत्री स्थिति से निबटने के लिए मुकम्मल बंदोबस्ती का पूरे राज्य को आासन दे रहे थे.
लेकिन इसके कुछ ही घंटों बाद हरियाणा उपद्रवियों के हाथों बंधक हो गया. सैकड़ों वाहन फूंक दिये गए और इमारतों में आग लगा दी गई. दर्जनों मारे गए. अगर व्यवस्था बनाने के लिए केंद्रीय बलों या सेना बुलाई भी गई तो चुनी सरकार के बजाय हाईकोर्ट के सक्रिय हस्तक्षेप पर. यह होने पर ही स्थिति के सामान्य होने की उम्मीद बंधी है. न्यायालय की सख्ती से यह जाहिर हुआ कि उसको सरकार की इच्छा शक्ति या उसके नेता या उसकी मशीनरी पर भरोसा नहीं रह गया है. वैसे भी यह साध्वी से बलात्कार का केस 2002 में हाईकोर्ट के निर्देश पर ही दर्ज हुआ था.
तत्कालीन चौटाला सरकार तक ने गुरमीत के खिलाफ हवा में उड़ रही पीड़िता साध्वी की चिट्ठी पर कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखा सकी थी. अब भी इसी हाईकोर्ट ने डेरा प्रमुख की संपत्ति से नुकसान वसूलने का आदेश दिया है. सरकार कोर्ट चला रहा है तो फिर सरकार कहां है? पहले भी कई मौकों पर सरकार की किरकिरी हो चुकी है.
Tweet |