प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं
पुलवामा में सुरक्षा बलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस पर फिदायीन हमला इस साल का सबसे बड़ा हमला है.
पुलवामा में सुरक्षा बलों पर हमला (फाइल फोटो) |
आठ जवानों की शहादत ने एक बार फिर सुरक्षा बलों के साथ सरकार की चिंता बढ़ा दी है कि ऐसे हमले को रोकने के क्या उपाय किए जाएं? चिंता इसलिए भी कि क्योंकि हमले का अलर्ट पहले से था. फिर भी पुख्ता बंदोबस्ती में चूक हो गई. और जब तक इस चूक को नहीं सुधारा जाएगा, आतंकी वारदात पर लगाम लगाना असंभव है.
हालांकि, पत्थरबाजों पर शिंकजा और उन्हें फंड मुहैया कराने वालों पर अंकुश लगाकर अमन की कोशिश तो सुरक्षा बलों ने जरूर की, मगर असली चिंता तड़के होने वाली वारदातों और सुरक्षा बलों की चूक को लेकर है. पहले भी इस तरह के हमले अहले सुबह अंजाम दिए गए हैं, जिसकी काट बेहद जरूरी है. यह हमला भी सुबह 3.45 बजे अंजाम दिया गया. खुफिया तंत्र की कमजोरी इस मायने में चिंताजनक है कि सीमा पार से आए आतंकवादी नये समूह से थे और बेहतर ढंग से प्रशिक्षित थे.
खास बात यह है कि उन्होंने उस जगह को हमले के लिए चुना, जहां सुरक्षा बलों का इलेक्ट्रानिक सर्विलांस सेंटर है. साथ ही यहीं से आतंक से सबसे ज्यादा पीड़ित दक्षिण कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों का संचालन किया जाता है. वह तो सीआरपीएफ और पुलिस की तत्परता कही जाएगी कि आतंकवादियों को रिहायशी परिसर में घुसने से पहले ही रोक लिया गया वरना जान-माल की क्षति ज्यादा होती.
हमले के तरीके से यह पता चलता है कि आतंकवादियों के निशाने पर सेना और अर्धसैनिक बलों से ज्यादा पुलिस है. और पहली बार पुलिस लाइन पर इस तरह का हमला किया गया. प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और उसके आका पाकिस्तान पर लगता है अमेरिका के सख्त रुख का कोई असर नहीं हुआ है.
चीन का रवैया भी इस मायने में दुश्मन सरीखा है, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में हर बार जैश-ए-मोहम्मद को प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल कर उसे जीवनदान दे देता है.
नि:संदेह सेना और सुरक्षा बलों ने हाल के महीनों में कई आतंकवादियों को मार गिराया है. परंतु थोड़ी सी ढील ज्यादा नुकसानदेह साबित हो जाती है. यह या ऐसी वारदात पुलिस और बाकी बलों को ज्यादा से चौकस और मुस्तैद रहने की जरूरत बताती है.
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