सुप्रीम झटका

Last Updated 27 Jul 2017 06:29:15 AM IST

शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षकों के तौर पर समायोजित नहीं करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने भी इकरार जताया है.


सुप्रीम झटका

कुल 1.72 लाख शिक्षामित्रों के लिए यह जोर का झटका है, लेकिन अदालत ने मानवीय, सामाजिक और शिक्षण की महत्ता को भी अपने फैसले में समाहित किया है.

यही वजह है कि कोर्ट ने यह आदेश पारित किया कि शिक्षामित्र तत्काल नहीं हटाए जाएंगे. साथ ही, 72 हजार सहायक शिक्षक जो पूर्ण रूप से शिक्षक बन गए, उन्हें सही भी ठहराया है.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के और भी कई अर्थ हैं, जिन्हें संजीदगी के साथ उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बाकी राज्यों को भी आत्मसात करने की जरूरत है. चूंकि, शिक्षा अनिवार्य विषय है और यह सभी के विमर्श में होता है. लेकिन इसके उलट ज्यादातर सरकारों ने इसे वोटबैंक और सस्ती लोकप्रियता के पैमाने पर ही रखा है.

शिक्षामित्रों की नियुक्ति के मामले में भी उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने सतही सोच का परिचय दिया. सर्वशिक्षा अभियान के तहत शिक्षकों की नियुक्ति को जरूरी बताकर उन लोगों को भी इस जिम्मेदारी भरे क्षेत्र में शामिल कर लिया गया, जिससे फायदा कम और शिक्षा का नुकसान ज्यादा हुआ. कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा भी, ‘शिक्षकों की कमी का बहाना बनाकर की नियुक्तियों को वैध नहीं ठहराया जा सकता. आपने बाजार में उपलब्ध प्रतिभाओं को इज्जत नहीं बख्शी है.

जो कानूनन शिक्षक नहीं थे, योग्य थे ही नहीं, उन्हें योग्यता में रियायत देकर शिक्षामित्र बनाया गया वरना प्रशिक्षित शिक्षक की अहमियत क्या होती है, इस बात को नजरअंदाज नहीं करते.’ इस लिहाजन, शिक्षामित्रों के मामले में पारित यह ऐतिहासिक फैसला अन्य राज्यों के लिए भी साबित होगा, इस बात में कोई संदेह नहीं है.

ताजा फैसला इसकी भी तसदीक करती है कि नियम-कानून से नहीं चलने पर अदालत इसी तरह हस्तक्षेप करती रहेगी. कुल मिलाकर इस फैसले के बाद गेंद योगी आदित्यनाथ सरकार के पाले में है, जिसे बाकी नियुक्तियों को लेकर नये सिरे से शुरुआत करनी होगी. देखना होगा, पहले की सरकार से इतर इनका काम कितना नियमानुकूल होता है?



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment