बिकेंगे ‘महाराज’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जो फैसले लिया है, उनमें सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया के विनिवेश की स्वीकृति सबसे महत्त्वपूर्ण है.
बिकेंगे ‘महाराज’ |
इसके रणनीतिक विनिवेश का मतलब है कि सरकार इसमें से अपनी हिस्सेदारी कम करके निजी क्षेत्र को प्रवेश कराना चाहती है.
इसके लिए केंद्रीय वित्त मंत्री अरु ण जेटली की अध्यक्षता में एक समिति गठित होगी जो विनिवेश के तौर-तरीकों से लेकर एयर इंडिया की परिसंपत्तियों के भविष्य का फैसला करेगी. किंतु इससे जुड़े कर्मचारी संघों ने विनिवेश का विरोध किया है. इसके एक प्रतिनिधिमंडल ने नीति आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया से मुलाकात कर मांग की कि विनिवेश की जगह सरकार इसके कर्ज को माफ करे.
वस्तुत: नीति आयोग ने एयर इंडिया के विनिवेश की सिफारिश की थी. जाहिर है, कर्मचारी संघ इस फैसले के खिलाफ जाएगा एवं यह मामला राजनीतिक रंग भी लेगा. एयर इंडिया पर अभी कुल मिलाकर 52 हजार रु पये का कर्ज है. यह सामान्य राशि नहीं है. 2007 में स्पष्ट हो गया कि इसकी हालत अत्यंत खराब है.
उस वर्ष एयर इंडिया एवं घरेलू विमानन कंपनी इंडियन एअरलाइंस का नेशनल एविएशन कंपनी लिमिटेड में विलय किया गया. हालांकि, इससे घाटा पर अंतर नहीं आया. 2012 में यूपीए सरकार ने 30 हजार करोड़ का पैकेज भी दिया. बावजूद इसके कर्ज बढ़ता गया है. लंबे समय से ‘महाराजा’ कहे जाने वाले इस सरकारी विमानन कंपनी को बचाने के लिए कई सुझाव आते रहे हैं, जिनमें विनिवेश भी शामिल है. सवाल है कि क्या विनिवेश करना ही इसका एकमात्र रास्ता बच गया है? विनिवेश होगा भी तो कितना?
कोई भी निजी कंपनी इसमें तब तक धन नहीं लगाएगी जब तक कंपनी के प्रबंधन में उसका वर्चस्व न हो. सरकार का शेयर ज्यादा रहने की स्थिति में यह संभव नहीं होगा. तो क्या सरकार इसमें अपनी हिस्सेदारी निवेश करने वाली कंपनी से कम रखने को तैयार है? ये सवाल ऐसे हैं, जिनका कुछ उत्तर वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली समिति की अनुशंसाओं से मिल जाएगा. जो लोग विनिवेश के विरोधी हैं उनको इसे बचाने का ब्लूप्रिंट भी सामने लाना चाहिए.
सरकारी विभागों द्वारा इसके दुरु पयोग, प्रबंधन की अकुशलता, इस सोच में कि सरकारी कंपनी होने के कारण इसे बंद होना नहीं है, पेशेवराना तरीके से चलाने की कोशिश न किया जाना..इसकी दुर्दशा का प्रमुख कारण रहा है. तो क्या ये कारण दूर नहीं किए जा सकते?
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