खस्ताहाल विपक्ष
राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार के नामांकन के वक्त कई शीर्ष नेताओं के मौजूद नहीं रहने से यह बात पूरी तरह साफ हो गई है कि विपक्ष की न केवल रणनीति कमजोर है, बल्कि उसकी तैयारियां भी एनडीए के मुकाबले पस्त हैं.
खस्ताहाल विपक्ष |
हालांकि यह बात एनडीए प्रत्याशी राम नाथ कोविंद को मैदान में उतारे जाने के वक्त ही करीब-करीब तय हो चुकी थी कि देश के सबसे ऊंचे संवैधानिक पद पर कौन विराजेगा, मगर विपक्ष की बेहद जीर्ण-शीर्ण कार्यशैली, सिर-फुटव्वल, अविश्वास और अस्पष्टता ने इस बात की भी पुष्टि कर दी कि फिलहाल, सत्ता पक्ष के आगे विपक्षी एकता शैशव अवस्था में है.
विपक्षी रणनीति की अगुवाई करने वाले राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और विपक्षी एकता की धुरी कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की गैर-मौजूदगी ज्यादा चौंकाने वाली रही. राजनीति में यह बात ज्यादा मायने रखती है कि कौन, कब और किसके साथ किस रूप में मौजूद रहता है.
अगर इसमें कहीं से भी संदेह रहता है तो बाजी पलट जाती है. क्योंकि अगर मीरा के नामांकन में लालू, राहुल, ममता, मायावती और अखिलेश यादव होते तो विपक्ष का सीना जरूर 56 इंच का होता. तो ऐसे में यह मान लेने में कोई शक-शुबहा नहीं होना चाहिए कि मीरा कुमार की उम्मीदवारी खस्ताहाल विपक्ष की असली तस्वीर बयां कर रही है.
नीतीश कुमार ने शायद इस बात को पहले ही भांप लिया था कि राम नाथ कोविंद के मुकाबले मीरा कुमार कमजोर हैं. हां, अगर उन्हें एनडीए प्रत्याशी के चयन के पहले मैदान में उतारा जाता तो न केवल विपक्ष ताकतवर होता बल्कि सत्ता पक्ष के खेमे में सनसनी भी पैदा करता. वैसे, विपक्ष में यह वैचारिक दरार नीतीश के कोविंद को समर्थन देने के चलते पैदा नहीं हुई. यह तो पहले से ही चला आ रहा है.
इस लिहाज से देखें तो जैस-तैसे उम्मीदवार उतार कर सत्ता पक्ष से मुकाबिल होने का दंभ भरना विपक्ष की भुरभुरी नींव के अलावा कुछ भी नहीं है. इससे यह भी साफ हो जाता है कि 2019 की लड़ाई में कौन भारी पड़ेगा? मजबूत विपक्ष का होना लोकतंत्र की पहली और अनिवार्य शर्त है. और इस समय विपक्ष का जो सूरतेहाल है, वह कतई बेहतर नहीं है.
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