फिर नक्सली चोट

Last Updated 26 Apr 2017 04:35:59 AM IST

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 25 जवानों को मिलाकर इस साल 72 जवान सिर्फ छत्तीसगढ़ में शहीद हुए हैं.


फिर नक्सली चोट

सुरक्षा बल पर सोमवार को हुआ हमला सूबे में अब तक सबसे घातक हमला माना जा रहा है. रह-रहकर माओवादी सत्ता को चुनौती देते रहते हैं. जबकि कहा यह जा रहा था कि पिछले कुछ महीनों में नक्सलियों के हौसले पस्त हुए हैं और उनकी मारक क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हुई है.

लेकिन डेढ़ महीने के भीतर एक ही जगह पर दो बड़े हमले यही साबित करते हैं कि नक्सलियों की कमर फिलहाल टेढ़ी नहीं हुई है और वो अब भी निरंकुश हैं. यह सब कुछ तब है जब डेढ़ दशक से राज्य में रमन सिंह की सरकार सत्ता पर काबिज है. लेकिन शोक जताकर या दिल्ली की बैठक छोड़कर घायल जवानों को देखने की रस्म अदायगी से कुछ नहीं होने वाला. रमन सरकार को अपने तौर-तरीकों में परिपक्वता लानी होगी, तभी निदरेष जवानों का बलिदान रोका जा सकता है और लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखा जा सकता है.

आखिर, ऐसा हर बार क्यों होता है? क्यों एक सी गलती की वजह से हर बार जवानों को बेवजह अपनी जान देनी पड़ती है? इसका जवाब उन्हें देना ही होगा, जो अमन और विकास के बल पर नक्सलियों के जमींदोज होने का बस स्वांग रचते हैं.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि क्रूर सिस्टम ने ही ऐसे हालात पैदा किए कि देश की जनता ही अपने देश के रक्षकों की जान लेने पर उतारू हो गई. किंतु हाल के दिनों में माओवादियों के लेवी वसूलने, ड्रग्स की तस्करी, हथियारों की खरीद-फरोख्त और देश के दुश्मनों से हाथ मिलाने की कुसंगति ने अब जनता की नजर में इन्हें गिरा दिया है. अब ये आदिवासियों, गरीबों, मजलूमों की आवाज बनने के बजाय कुंठा से ग्रस्त हो चुके और जीवन के उद्देश्यों से भटके हुए लोग हैं.

सो, इनका इलाज भी उसी तरह से होना चाहिए. सरकार को यह भी देखना होगा कि इनके पास अत्याधुनिक हथियारों की खेप कहां से आती है? जब तक सरकार कुछ ठोस मसलन, आंध्र प्रदेश के ग्रेहाऊंड्स की तर्ज पर विशेष बल और सरकारी नीतियों में पारदर्शिता नहीं लाएगी, तब तक ऐसे हमले होते रहेंगे. कहीं-न-कहीं सरकार से जनता भी खुद को जोड़ नहीं पा रही है. ऐसी कमियों और सुराखों को भरना होगा. साथ ही खुफिया तंत्र को भी आधुनिक बनाना होगा.



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