चीन की चाल
कई बार चीन के रवैये के लिए शब्द तलाशना मुश्किल हो जाता है.
चीन की चाल |
अभी उसने फिर से भारत को ‘वन बेल्ट वन रोड’ के तहत बनने वाले ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ में शामिल होने का अनुरोध किया है. इसे क्या कहा जाए? भारत ने स्पष्ट रूप से इस गलियारे पर चीन को अपना विरोध जताया है.
आम मान्यता है कि यह आर्थिक गलियारा व्यवहार में भारत को घेरने की एक साकार रणनीतिक निर्माण है. इसे सिर्फ आर्थिक गलियारा कहना गलत होगा. जब आप पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से लेकर बलूचिस्तान तक एक साथ कई प्रकार का निर्माण करते हैं, जिनमें सड़कें भी शामिल हैं और इसे ग्वादर बंदरगाह तक विस्तार करके उनकी सुरक्षा का भार अपने जिम्मे लेते हैं तो इसे केवल आर्थिक गलियारा संबंधी निर्माण नहीं कहा जा सकता.
चीन के विदेश मंत्री वांग ची कहते हैं कि इसका कश्मीर मामले से सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं है. अजीब बात है. सीधे तौर पर या परोक्ष तौर पर लेने देने से आपका क्या मतलब है? वांग कहते हैं कि इसका सीमा विवाद से भी कोई संबंध नहीं है. यह चीन की परिभाषा है. हम मानते हैं कि पाकिस्तान ने कश्मीर के जिस भाग पर कब्जा किया हुआ है और जिसमें से पहले से आपको उसने जमीन दे दिया है वह हमारे भूभाग का हिस्सा है.
इसे चीन को समझना चाहिए था. वास्तव में पाक अधिकृत कश्मीर में जो भी निर्माण होता है उसका भारत हर हाल में विरोध करेगा. चीन ने पहले भी भारत को उसमें शामिल होने का निमंतण्रदिया है. यह सीधे-सीधे जले पर नमक छिड़कने जैसा है. भारत की मांग इस तथाकथित आर्थिक गलियारे के निर्माण न करने का है और इसे सुनने और स्वीकार करने की जगह चीन कह रहा है कि आप भी इसमें शामिल हो जाओ हम आपका स्वागत करेंगे. इसे चिढ़ाना नहीं कहेंगे तो और क्या. चीन तो अरुणाचल तक को अपना भाग कहता है तो सीमा विवाद की उसकी परिभाषा ही अलग है.
भारत उससे सहमत नहीं हो सकता. चीन अगले 14 15 मई को वन बेल्ट वन रोड के तहत सिल्क रूट के निर्माण पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बुला रहा है. यह रूट एक साथ एशिया, यूरोप एवं अफ्रिका को जोड़ना है. देखना है इसमें कौन-कौन देश शामिल होते हैं. भारत को भी इसमें निमंत्रित किया गया है. भारत को वहां जाकर अपनी बात खुलकर रखनी चाहिए.
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