एच-1 बी वीजा
विगत दिसम्बर से जिसका डर सता रहा था, वह सच हो गया. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने एच-1बी वीजा देने की प्रक्रिया और पात्रता की समीक्षा के आदेश पर दस्तखत कर दिये हैं.
एच-1 बी वीजा |
एक मंत्री-स्तरीय उच्च समिति को वीजा के नियमों को कड़े करने का काम सौंपा गया है.
इसका सीधा मतलब-चुनाव के समय से ही-अमेरिकियों के लिए मोटी तनख्वाह वाली नौकरियों पर पहला हक सुनिश्चित करना और केवल उच्चतम तकनीकी दक्षता वाले पेशेवर विदेशी आव्रजकों को ही अमेरिका आने देना है.
यह भारतीयों के लिए स्वाभाविक ही गंभीर चिंता का विषय है. इससे उनके रोजगार के अवसर छीनने लगेंगे. टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी कम्पनियों के पेशेवर सबसे ज्यादा तबाह होंगे, जिन्हें अमेरिकी कम्पनियां अपने निवासियों की तुलना में मामूली वेतन पर नियुक्त करती हैं. चूंकि अमेरिकी उसी काम के लिए नियमत: ज्यादा वेतन पाने के हकदार हैं, लिहाजा कम्पनियां अपनी लागत कम करने लिए भारतीय या फिर चीनियों को चुनना पसंद करती हैं.
इससे अमेरिकियों के लिए रोजगार के मौके कम हो जाते हैं. ट्रंप के पूर्ववर्त्ती बराक ओबामा ने तो अपने नागरिकों को डराया कि अगर वे पढ़ाई में फिसड्डी रहे तो मलाईदार नौकरियां भारतीय ले उड़ेंगे. लेकिन ट्रंप की तरह बराक ने कोई कमेटी नहीं बनाई थी.
लिहाजा, छह सालों के लिए एच-1 बी वीजा पर अमेरिका गए भारतीयों का पलायन शुरू हो गया है. दिसम्बर से अब तक 7,900 लोग भारत आकर रोजगार तलाश रहे हैं. कमेटी की सिफारिशें लागू हुई तो भारत लौटने वालों की तादाद निराशाजनक हद तक बढ़ेगी. ब्रिटेन पहले से ही ना-नुकुर कर कड़ा हो गया था, अब आस्ट्रेलिया ने भी 445 वीजा रद्द कर 95 हजार पेशेवरों को रोजगारविहिन कर दिया है.
इनमें ज्यादा भारतीय हैं. फ्रांस में राष्ट्रपति पद की महिला प्रत्याशी ने भी इस मसले पर ट्रंप की लाइन ली हुई है. तो स्वदेशी होते इस वैिक परिदृश्य में अपने वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह आासन कोरा लगता है,‘कम से कम इस साल डरने की जरूरत नहीं है. वह अमेरिका से बातचीत करेंगे.’ आखिर एक देश को अपने नौजवानों को कम रोजगार देने के लिए आप कैसे कह सकते हैं! दरअसल, यह अपने पेशेवरों के लिए रोजगारों के ठोस वैकल्पिक वैिक ठिकाने ढूंढ़ने का समय है.
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