हो गया गठजोड़
आखिरकार टूटते-टूटते समाजवादी पार्टी एवं कांग्रेस का गठजोड़ हो गया.
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठजोड़ |
इस गठजोड़ के साथ ही उत्तर प्रदेश में ज्यादातर स्थानों पर सशक्त त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति कायम हो गई है. दरअसल, गठबंधन दोनों पक्ष चाह रहे थे, लेकिन सपा एक सीमा से आगे जाकर ऐसा करने को तैयार नहीं थी. उसने अपने उम्मीदवारों की घोषणा करना आरंभ कर दिया, जिनमें वे सीटें भी शामिल थीं, जिन पर कांग्रेस दावा कर रह थी.
सपा 2012 के कांग्रेस के प्रदर्शन को आधार बना रही थी, जिससे समस्या बढ़ गई थी. इससे कांग्रेस के खाते में सीटें कम आतीं. तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने एक समय गठबंधन की संभावना का परित्याग भी कर दिया. किंतु सोनिया गांधी व राहुल गांधी ने जब गठबंधन पर वीटो लगा दिया तो फिर इनके सामने चारा क्या था? जरा सोचिए, कांग्रेस ने अपने मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तक घोषित कर दिया था.
राहुल की एक महीने के यात्रा भी हुई थी. बावजूद इस तरह एकदम छोटे साझेदार के रुप में उसने समझौता किया है तो उसका कुछ तो अर्थ है. वास्तव में कांग्रेस इतिहास में सबसे कम सीटों पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने जा रही है. 1996 में बसपा के साथ उसका गठबंधन हुआ था तब भी वह 125 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इतने कम सीटों पर लड़ना इस बात का प्रमाण है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में किस स्थिति में है.
ऐसा लगता है कांग्रेस का ध्यान 2019 की ओर ज्यादा है. उसे लगता है कि अगर नरेन्द्र मोदी से मुकाबला करना है तो अभी से कुछ पार्टियों के साथ औपचारिक संबंध बनाए रखना होगा. बिहार में वह भले गठबंधन की सबसे छोटी पार्टी के रूप में चुनाव लड़ी लेकिन दो पार्टयिां के साथ उसके संबंध तो कायम हैं. अब सपा भी आ गई. अगर यह प्रयोग सफल रहा तो छोटे साझेदार के रूप में ही सही कांग्रेस ऐसे गठबंधनों का विस्तार कर सकती है.
हां, परिणाम मनोनुकूल नहीं आया तो उसे अवश्य अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा. सपा के लिए कांग्रेस का साथ केवल इसलिए जरूरी था क्योंकि उसका मानना है कि इससे मुस्लिम मतों को बिखरने से बचाया जा सकता है. बसपा के मुस्लिम प्रेम से सपा को आशंका है कि कहीं उसके स्थायी जानाधार के एक मुख्य घटक का अंश छिटक न जाए. देखना है, कांग्रेस के आने से यह बिखराव कितना रु कता है.
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