गलत उदाहरण

Last Updated 23 Jan 2017 06:14:23 AM IST

तो जल्लीकट्टू खेल तमिलनाडु के अलंगानाल्लुर से आरंभ हो गया.


जल्लीकट्टू खेल (फाइल फोटो)

 मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम द्वारा इसके उद्घाटन के साथ पूरे प्रदेश में आंदोलनरत लोग कह सकते हैं कि उनकी विजय हुई. जल्लीकट्टू के समर्थन में जिस तरह का जनसैलाब उमड़ा और तमिलनाडु की सभी राजनीतिक पार्टियां एवं फिल्म से लेकर अन्य क्षेत्रों के सेलिब्रिटिज इसके समर्थन में आए, वह अकल्पनीय था. एक अध्यादेश लाया गया, जिसे राज्यपाल ने तुरंत स्वीकृत किया और वह केंद्र सरकार की स्वीकृति के बाद तत्काल राष्ट्रपति तक पहुंच गया.

राष्ट्रपति के पास पहुंचने के पहले ही अन्नाद्रमुक के सांसदों ने उनसे मुलाकात कर अध्यादेश को स्वीकृति देने का निवेदन किया. वास्तव में पन्नीरसेल्वम की प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद ही यह तय हो गया था कि केंद्र सरकार किसी सूरत में तमिलनाडु के लोगों और दलों को नाराज नहीं करना चाहती.

प्रधानमंत्री ने स्वयं ट्विट किया कि वे तमिलनाडु की समृद्ध संस्कृति एवं परंपरा का सम्मान करते हैं. अन्नाद्रमुक प्रमुख शशिकला एवं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की ओर से समर्थन के लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देना क्या भविष्य की सहकारी राजनीति का कोई संकेत है? दोनों सरकारें यह भी न भूलें कि देश में जल्लीकट्टू को लेकर दो स्पष्ट मत रहे हैं.



एक वर्ग का मानना है कि यह बैलों पर अत्याचार है. जिस तरह आप उसे दौड़ने, भागने के लिए मजबूर करते हैं वह पशु उत्पीड़न की सीमा में आता है. इनके मत को स्वीकार करते हुए ही 2014 में उच्चतम न्यायालय ने इस पर रोक लगाई थी. केंद्र सरकार को इस समय उच्चतम न्यायालय जाना पड़ा है और उसकी एक सप्ताह तक फैसला न देने की अपील न्यायालय ने स्वीकार कर ली.

परंपराएं संस्कृति, धर्म, रीति-रिवाज से निकलते हैं और उनका सम्मान किया जाना चाहिए. किंतु कोई भी परंपरा परिस्थिति और काल निरपेक्ष नहीं हो सकती. समाज हमेशा अपनी परंपराओं का मूल्यांकन करता है और समय के अनुसार उसमें परिवर्तन लाता है.

जिन स्थितियों में जल्लीकट्टू आरंभ और विस्तृत हुआ क्या वही स्थितियां आज हैं? क्या पोंगल के साथ उसका अविच्छिन्न जुड़ाव अपरिहार्य है? बैलों को दौड़ाने के लिए नशा देने से लेकर कई प्रकार उत्पीड़न की शिकायतें हैं. यह गलत है. क्या जल्लीकट्टू समर्थक यह सुनिश्चित करेंगे कि बैलों के साथ किसी प्रकार का अत्याचार न हो?

संपादकीय


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