रहिए चुप्पी के शिल्प में

Last Updated 13 Jan 2017 02:13:39 AM IST

कहा गया है; ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है. लेकिन क्या वाकई यह सही है? हाल के वर्षों में ईमानदार लोगों को ही संदेह के चश्मे से देखा जाने लगा है.


रहिए चुप्पी के शिल्प में

चाहे बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्नातक की परीक्षा पास करने संबंधी रजिस्टरों को सार्वजनिक करने का आदेश देने वाले सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलु की हो या एम्स में बीसियों भ्रष्ट कारनामों की जांच करने वाले एम्स के चीफ विजिलेंस ऑफिसर संजीव चतुर्वेदी की या हरियाणा में बेईमानों की पोल खोलने वाले आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की हो या फिर मध्य प्रदेश में पांच सौ करोड़ के हवाला कारोबार की जांच कर रहे कटनी के एसपी गौरव तिवारी के महज चार महीने में ही तबादले किए जाने की; फेहरिस्त लंबी है. लेकिन विडम्बना है कि सरकारों की सेहत पर इन बातों का रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता कि ईमानदारी को दंडित करने पर उनके प्रति जनता में क्या संदेश जाता है!

परिपाटी ऐसी हो रही है कि संवैधानिक संस्थान बौने होते जा रहे हैं और सरकारी अधिकारी बेबस और लाचार. नहीं तो क्या वजह रही कि प्रधानमंत्री की डिग्री सार्वजनिक करने का आदेश जारी करने वाले अधिकारी से उसका काम छीनकर किसी दूसरे को सौंपने की? कटनी के एसपी का क्या दोष था, जिन्हें प्रशस्ति पत्र के बदले तबादले की चिट्ठी थमा दी गई.

दरअसल, यह काम हर सरकार करती रही है, मगर इस वक्त ये उदाहरण ज्यादा चुभ रहे हैं. इसलिए कि एक खास दल की सरकार आई ही सत्ता में इस आश्वासन और वादे पर है कि उसका धर्म संविधान है. इसी में ‘सम्यक भाव से दायित्व निर्वहन’ की बात है, जो मंत्री से लेकर सरकार के अदने से पुर्जे के लिए समान भाव लागू होनी चाहिए. लेकिन इसके बजाय कर्त्तव्यपरायणता सजायाफ्ता हो जा रही है.

हालांकि उपर्युक्त उदाहरणों के अलावा, भी बहुत से काम हो रहे हैं, जिनसे सरकारों के सम्यक बर्ताव का दावा खंड-खंड होता है. लेकिन इस पर सामने की तरफ उठने वाली उंगली को मोड़कर ओठ पर चिपका दिया जा रहा है, चुप्पी के शिल्प में. तर्क है कि सरकार को तबादले का हक है. बिल्कुल है पर यह भी तो देखें कि इससे आपकी सरकार के इकबाल को बट्टा तो नहीं लगा है.



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