विश्व पटल पर छाने को आतुर क्रिकेटर यशश्वी कैसे निखरा ज्वाला की भट्टी से ?
आकाश की भी सीमाएं होती हैं , जाओ और उसे पकड़ो। कहने के लिए ये कहावतें हैं लेकिन सही मायनों में देश के कुछ लोगों ने इन कहावतों को चरितार्थ भी किया है। उन्हीं जैसे लोगों में एक शख्स हैं ज्वाला सिंह।
![]() jwala singh and yashasvi jaiswal |
आमतौर पर मुम्बई जाने वाले बॉलीवुड में कुछ करने का सपना लेकर जाते हैं। अभिनेता ,अभिनेत्री या फिर फिल्मों या टीवी सीरियलों में कुछ करने का ख्याल लेकर मुंबई जाने वालों की बहुत सी कहानियां सुनी और कही जाती हैं। उनके संघर्ष के किस्से सुनाए जाते हैं, लेकिन ऐसा कम ही देखने को मिला है कि कोई लड़का क्रिकेटर बनने का सपना लेकर मुंबई जाता हो। ज्वाला सिंह नाम का एक लड़का उन्ही कम या ना के बराबर वाले लड़कों में शामिल है, जो गोरखपुर जिले के एक छोटे से गांव से सिर्फ क्रिकेटर बनने के लिए मुंबई गया।
उसका सपना तो पूरा नहीं हुआ लेकिन उसने अपने नाम को जरूर सार्थक कर दिया। उसके सीने में क्रिकेटर बनने की जो ज्वाला धधक रही थी ,उस ज्वाला ने उसके सपने को भले ही जला दिया, लेकिन उसकी चिंगारी से कुछ ऐसे क्रिकेटर निकले जो आज विश्व पटल पर छाने को आतुर हैं। उन्ही में से एक नाम है यशश्वी जायसवाल का। इंडियन प्रीमियर लीग में अपने बल्ले से तूफ़ान लाने वाला ,बड़े बड़े बॉलरों का अपने बैट से उनका हौसला तोड़ने वाले यशश्वी जायसवाल ने भारत और वेस्ट इंडीज के बीच चल रही टेस्ट श्रृंखला के पहले टेस्ट मैच में सेंचुरी बनाकर ना सिर्फ अपने गुरु जवाला सिंह का मस्तक ऊंचा कर दिया बल्कि यह भी बता दिया कि भले ही इस समय इंडियन टीम में सचिन ,सहवाग और सौरभ गांगुली जैसे बैटर नहीं हैं, लेकिन उनकी खाली जगह को भरा जा सकता है।
जवाला सिंह 1995 में गोरखपुर की ट्रेन पकड़कर मुंबई पहुंचे। उनके घर के लोगों ने भी उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें मुंबई जाने दिया। मुंबई पहुंचकर उन्होंने श्रद्धा आश्रम स्कूल में दाखिला लिया। वहीं से उन्होंने क्रिकेट की बारीकियों को सीखने की शुरुवात की। हालांकि गोरखपुर में रहते हुए उन्होंने अच्छा से क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे उनका स्कूल में नाम होने लगा। मुंबई में स्कूली क्रिकेट का अपना एक अलग महत्व है। क्रिकेट को जानने वाले अच्छी तरह समझते होंगे कि कभी सचिन तेंदुलकर भी स्कूली क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलकर एक विश्व रिकार्ड बनाये थे। उस रिकार्ड में उनका साथ दिया था विनोद कांबली ने।
ज्वाला सिंह का मुंबई की अंडर 17 स्कूल टीम में चयन भी हो गया था। बाद में उनका इण्डिया की स्कूल टीम में भी चयन हुआ। लेकिन चोट लगने की वजह से वो बहुत ज्यादा खेल नहीं पाए। अंडर 22 के लिए उनका चयन त्रिपुरा की टीम में भी हुआ। जहाँ उन्होंने अपने टैलेंट से सबको प्रभावित किया। जवाला सिंह की प्रतिभा का सभी लोहा मानते थे, लेकिन उनकी किशमत ने उनका साथ नहीं दिया। अपने सपने को टूटते देख ज्वाला निराश और हताश भी हुए, लेकिन रुके नहीं, हिम्मत नहीं हारी। उनके सपने को,जो ज्वाला जला रही थी, उसे उन्होंने अपना हथियार बना लिया।
2010 में उन्होंने फाइनली कोचिंग शुरू करने का मन बना लिया। ज्वाला सिंह ने भी सचिन के कोच रहे रामाकांत आचरेकर से कोचिंग ली थी, लिहाजा उन्हें भी कोचिंग के गुर विरासत में मिल गए थे। उन्होंने कुछ बच्चों को लेकर कोचिंग शुरू कर दी। उनके शिष्यों में पृथ्वी शा का भी नाम शामिल है। पृथ्वी मुंबई रणजी टीम के कप्तान हैं। पृथ्वी के कुछ दिन बाद उनकी नज़र एक ऐसे बच्चे पर पड़ी जो बेहद गरीब था, लेकिन उसके ऊपर क्रिकेटर बनने का धून सवार था। फिर क्या था, उस गरीब घर के बच्चे को ज्वाला सिंह ने अपने पास बुलाया। जवाला सिंह ने उस बच्चे को अपने बेटे की तरह पाला , उसे क्रिकेट की बारीकियां सिखानी शुरू कर दीं। हालांकि ज्वाला सिंह के संपर्क में आने से पहले यशश्वी ने कहीं और से भी कोचिंग ली थी, लेकिन ज्वाला सिंह ने उसे नए सिरे से तराशना शुरू कर किया।
नतीजा यह रहा कि यशश्वी पहले मुंबई की जूनियर टीम में शामिल हुआ, फिर इण्डिया की अंडर 19 टीम में शामिल हुआ। उसके बाद उसका चयन आईपीएल के लिए हुआ। पिछले दो साल से इंडियन प्रीमियर लीग में धमाका मचाने के बाद उसका इसी वर्ष इंडियन टेस्ट टीम में चयन हुआ। यशश्वी इस समय इंडियन टीम के साथ वेस्ट इंडीज के दौरे पर हैं। भारत और वेस्ट इंडीज के बीच पहला टेस्ट मैच खेला जा रहा है। भारतीय कप्तान रोहित शर्मा के साथ ओपनिंग करने गए यशश्वी जायसवाल शतक जड़कर अभी भी क्रीज पर डटे हुए हैं। ज्वाला सिंह के एक शिष्य पृथ्वी शा ने भी पहले टेस्ट …
आतुर
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