प्रियंका गांधी की एक कॉल ने बनाई बिगड़ी बात और हो गया कांग्रेस-सपा का गठबंधन

Last Updated 23 Jan 2017 09:28:12 AM IST

काफी उतार-चढ़ाव के बाद आखिरकार उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच रविवार को गठबंधन हो गया और ये सब संभव हुआ सिर्फ एक कॉल से.


प्रियंका गांधी की एक कॉल ..और हो गया गठबंधन (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले ही कांग्रेस और सपा के गठबंधन की बात शुरू हो गई थी. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जब पारिवारिक झगड़े में उलझे हुए थे, तब भी वे लगातार कांग्रेस से गठबंधन की हिमायत कर रहे थे. लेकिन जब उन्होंने इकतरफा 210 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी जिनमें वे 10 सीटें भी हैं, जहां से वर्तमान में कांग्रेस के विधायक हैं, तब कांग्रेसी खेमा बेचैन हो उठा.

कांग्रेस को लगा कि पूरी तरह मन बना लेने और अखिलेश को ही अपना चेहरा मान लेने के बाद अगर गठबंधन नहीं हुआ तो इसे एक बड़ी रणनीतिक चूक मानी जाएगी. हां-ना के बीच आखिरकार कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी ने शनिवार को बैटिंग शुरू की और उनके प्रयास ही निर्णायक साबित हुए.

दरअसल शनिवार देर रात तक कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन को लेकर बैठकों का दौर चलता रहा. कांग्रेस कम से 120 सीटें मांग रही थी और सपा सौ से ज्यादा सीटें देने पर तैयार नहीं थी. गतिरोध कायम था, इसी बीच प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला. देर रात प्रियंका की रामगोपाल से मुलाकात हुई.

उसके बाद प्रियंका की ओर से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने अखिलेश और उनकी पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से बात की.  सूत्रों के मुताबिक प्रियंका गांधी और अखिलेश याद के बीच हुई एक फोन कॉल के बाद इस गठबंधन पर मुहर लग गई.

सूत्रों के मुताबिक गठबंधन में एक और बड़ा पेंच था कि उन दस सीटों का क्या होगा, जिन पर सपा ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं और वर्तमान में उन सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है.

इसका फॉर्मूला निकला कि सपा इन दस सीटों में से सात सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ देगी, तब जाकर बात बनी. बहरहाल, अमेठी और रायबरेली पर सपा को कांग्रेस नहीं मना पाई और उसे समझौता करना पड़ा.

पीके भी संभाले हुए थे मोर्चा

एक ओर दिल्ली में प्रियंका गांधी सक्रिय थीं तो उधर कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी लगातार कोशिशें कर रहे थे. उनकी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लखनऊ में दो बार बैठकें हुई और कांग्रेस को 105 सीटें दिए जाने का फैसला हुआ.

पल्ला झाड़ने लगे थे कांग्रेसी

लगभग टूट की कगार पर गठबंधन के पहुंचने की स्थिति को देखकर तमाम कांग्रेसी पहले से ही पल्ला झाड़ने लगे थे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने तो बाकायदा ट्वीट कर अपनी सफाई देनी शुरू कर दी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि सपा से गठबंधन को लेकर उन्होंने सपा के किसी भी नेता से कभी कोई बात नहीं की है.

अखिलेश के रवैये से बढ़ी थी नाराजगी

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि जब अखिलेश यादव को सपा का नाम और साइकिल चुनाव चिन्ह नहीं मिला था, तब वे कांग्रेस को 142 सीटें देने को तैयार थे. अखिलेश यादव ने बाद में जब उन्हें पार्टी और चुनाव चिन्ह मिल गया तो वे 121 सीटों पर आ गए. जब कांग्रेस ने 121 सीटों पर हां कर दी तो वे सौ सीटें देने लगे. उन्होंने अपनी मजबूरी भी बताई चूंकि नेताजी की 38 लोगों की सूची को भी समायोजित करना है, ऐसे में कांग्रेस को सौ से अधिक सीटें दे पाना संभव नहीं है.

सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस लाज बचाने के लिए एक वक्त पर 110 सीटों पर मान गई थी, लेकिन अखिलेश ने आजम खां सरीखे कुछ नेताओं की सीटों की मांग आने के चलते अपनी असमर्थता जताई. तमाम उतार-चढ़ाव के बाद आखिरकार गठबंधन हो गया और सपा अब 298 और कांग्रेस 105 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

बिना समय गंवाए घोषित किए नाम

गठबंधन को लेकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच जिन दस सीटों में से सात सीटें सपा ने वापस कर दी हैं यानि वहां से अपने घोषित प्रत्याशी वापस ले लिए हैं उन पर कांग्रेस ने बिना समय गंवाए अपने मौजूदा विधायकों को टिकट दे दिए हैं. सपा ने कांग्रेस को दस में से सात सीटें वापस दी हैं उनमें देवबंद, शामली, मथुरा, बिलासपुर, हापुड़, स्याना और खुर्जा विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.

बनेगा न्यूनतम साझा कार्यक्रम

कांग्रेस-सपा अब न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाएंगे. यह कार्यक्रम तय करने और इसे घोषित करने में एक सप्ताह का वक्त लगेगा. लखनऊ में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने खुद इसकी जानकारी दी.
 

 

रत्नेश मिश्र


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