सपा का घमासान शांत होने के बाद बसपा की काट तैयार करने की भाजपा की चुनौती

Last Updated 17 Jan 2017 06:29:12 PM IST

लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में चमत्कारिक प्रदर्शन के बाद अब राज्य में सरकार बनाने का प्रयास कर रही भाजपा के लिए बसपा की रणनीतिक काट तैयार करना चुनौतीपूर्ण हो गया है.


भाजपा अध्यक्ष अमित शाह (फाइल फोटो)

भाजपा सार्वजनिक तौर पर मायावती की बसपा को मुकाबले से बाहर भले ही बता रही हो और अपना सीधा मुकाबला सपा से बता रही हो लेकिन कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को जमीनी स्तर पर इस बात का एहसास है कि उनका असली मुकाबला बसपा से ही है.

भाजपा के राष्ट्रीय सचिव श्रीकांत शर्मा ने दलितों का भाजपा के प्रति रूझान होने पर जोर देते हुए कहा कि मोदी सरकार दलित, गरीब, कमजोर वर्गों के विकास के लिए काम करती है और लोग इस हकीकत को समझ चुके हैं. इसलिए सभी ने भाजपा के पक्ष में जनादेश देने का मन बना लिया है. 

उधर, अपने दलित आधार वाले मतदाताओं को लेकर आश्वस्त बसपा अब ऊंची जातियों, सर्वाधिक पिछड़ी जातियों और मुसलमानों का एक इंद्रधनुष तैयार करने में जुटी है.
    
भाजपा जहां उत्तर प्रदेश में ओबीसी वर्ग को अधिक से अधिक अपने साथ जोड़ने पर जोर दे रही है, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपने दलित आधार को मजबूत बनाते हुए सवर्णों पर ध्यान केंद्रित किये हुए है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश के लिए उम्मीदवारों की पहली सूची में काफी संख्या में ओबीसी समुदाय के लोगों को टिकट दिया है.

बसपा सुप्रीमो मायावती हाल ही में अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर चुकी हैं जिसमें पार्टी ने 87 दलितों और 97 मुसलमानों को टिकट दिया है. इसके साथ ही 106 ओबीसी और 113 सवर्णो को टिकट दिया गया है.

बसपा के प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि मंडल के नये अवतार वाले भाजपा में सवर्णो के लिए कोई जगह नहीं बचा है. सवर्णो के लिए सबसे उपयुक्त स्थान बसपा में है और हम खुले हृदय से उनका स्वागत करते हैं. बसपा मुसलमानों को भी ज्यादा से ज्यादा अपने पाले में लाने पर जोर दे रही है.
    
भदौरिया ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मुसलमान चेत गए हैं और बसपा की ओर रूख कर रहे हैं.



भाजपा उत्तर प्रदेश में सत्ता के 14 वर्षो के वनवास को समाप्त करने के लिए पूरा जोर लगा रही है और इस दिशा में पिछले वर्ष नवंबर..दिसंबर में राज्य के चार हिस्सों में परिवर्तन यात्राएं निकाली गई जिसके तहत 17,500 किलोमीटर का सफर तय किया गया.

दो जनवरी को लखनऊ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली को मिलाकर उनकी सात रैलियां हो चुकी हैं जबकि अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी की 15 से अधिक रैलियां और कई बड़े कार्यक्र म हो चुके हैं.

भाजपा ने संगठन का ढांचा भी सामाजिक समीकरण के लिहाज से खड़ा किया है और संगठन को छह हिस्सों में बांट कर सामाजिक समीकरण के आधार पर जिम्मेदारी सौंपी है.

भाषा


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