अपनी टेक्निक प्रूफ करने के लिए Radio Mechanic सूरजदीन ने बनाया Rail Engine

Last Updated 11 Jul 2023 06:05:57 PM IST

रेडियो मकैनिक सूरजदीन ने अपनी जिंदगी भर की गाढ़ी कमाई रेल इंजन बनाने में गवा दी। उनकी चाहत थी की उनकी यह टेक्निक 'सूरज ऑटो सिग्नल' के नाम से मशहूर हो। इसलिए लखनऊ, दिल्ली में बैठे रेल के अधिकारियो से वे कई बार मिले। बाद में घर पर ही इंजन बना डाला, लेकिन रेलवे से सिग्नल न मिलने से वे निराश है।


Radio Mechanic सूरजदीन ने बनाया Rail Engine

'सूरज ऑटो सिग्नल' नामक इस यंत्र विन्यास को सूरजदीन ने क्यों बनाया उसके पिछे की कहानी इस तरह है।  वर्ष 2001 में बनारस में इंजन सेटिंग के दौरान एक कांवरिया द्वारा इंजन के लीवर दबा देने से ट्रैन उलटी दिशा में चल पड़ी। इलाहाबाद में ठोकर लगाकर उस इंजन को गिराया गया जिसमे दो लोगो की मौत हो गयी। 

इस घटना से आहत होकर सूरजदीन ने ऐसी तकनीक विकसित करने की सोची ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओ की पुनरावृती न हो सके। उन्होंने रेलवे के उच्च अधिकारियो से पत्राचार कर अपना तकनीक  का  एक नमूना रेखांकन कर भेज दिया।  उनके पत्र का संज्ञान लेते हुए 6 फरवरी 2002 को तत्कालीन उप निदेशक संरक्षा रेलवे जगदीश कुमार ने सूरजदीन को पत्र भेजकर दुर्घटना रोकने के वाले उस यन्त्र विन्यास का प्रस्ताव विवरण सहित माँगा।  सूरजदीन ने क्रमवार आठ बिंदु पर विस्तृत विवरण रेलवे को भेज दिया।  

जवाब में 3 मार्च 2002 को तत्कालीन निदेशक संरक्षा रेलवे निखिल पांडेय द्वारा सूरजदीन के सुझाव को सरहानीय बताते हुए धन्यवाद के साथ भेजे पत्र में कहा गया की दुर्घटना रोकने के बावत आपके सुझाव पर चर्चा हुई।  लकिन व्यहवारिक तोर पर त्रुटि पूर्ण है।  सूरजदीन एवं रेलवे के मध्य इस विषय को लेकर पत्राचार में मुख्य संरक्षा अधिकारी अजय शुक्ल द्वारा 8 अक्टूबर 2010 को सूरजदीन को रेलवे के प्रधान कार्यालय दिल्ली बुलाया गया।  वे दो बार दिल्ली गए।  सूरजदीन के निवेदन पर उन्हें अपनी तकनीक लखनऊ में ही परिक्षण करने की अनुमति दी गयी।  20 नवम्बर 2009 को मुख्य सरंक्षा अधिकारी अजय शुक्ला ने वरिष्ठ मंडलीय सरक्षा अधिकारी नार्दन रेलवे लखनऊ को पत्र भेजकर सूरजदीन के प्रपोजल के परीक्षण की रेलवे बोर्ड की मंशा बताई।

सूरजदीन ने बताया की अनुशंधान अभिकल्प अवं मानक संगठन (RDSO) लखनऊ से 5 अगस्त 2003 को मुझे भेजे प्तरमे बताया गया की मेरे द्वारा विकसित यंत्र विन्यास की सीडी, फोटो के आधार पर RDSO में चर्चा के दौरान कुछ कमिया बताते हुए प्रस्तावित यंत्र विन्यास को भारतीय रेलवे में प्रयोग के उपयुक्त नहीं  पाया गया।

बकौल सूरजदीन , 'तभी मेने निर्णय ले लिया था की अब में इंजन का एक मोडल तैयार कर प्रमाणित कर दूंगा की मेरी तकनीक कारगर है।  सूरजदीन को लगभग ढाई कोंटल के इस रेलवे इंजन को बनाने में कई साल बीत गए।  प्लेटफॉर्म बनाये।  सांकेतिक रूप से बने ट्रैक अवं स्टेशन पर व्यहवारिक परिक्षण कर सूरजदीन ने लगभग डेढ़ घंटे की सीडी तैयार की है।  

संसद में भी उठा था यह मामला

राज्यसभा में सांसद वीर सिंह द्वारा 25 अप्रैल 2013 में अतिरिक्त प्रश्न संख्या 3837 में इस मामले को उठाया गया था।  जवाब में तत्कालीन रेल मंत्री बंडारू दत्तात्रये ने सदन को बताया था, की UP के सूरजदीन यादव द्वारा एक ऐसी तकनीक विकसित करने का दवा किया गया है , जिसमे धुंध के समय गाडी चलने के दौरान बाधा नहीं होगी।  महकमे की तरफ से सूरजदीन की इस तकनीक का विस्तृत प्रस्ताव समीक्षा के लिए RDSO को देने को कहा गया।

यह तकनीक दुर्घटना रोकने में मददगार थी : सूरजदीन
सूरजदीन ने बताया इस तकनीक से ट्रैन कुहासे के कारन गतव्य तक पहुंचने में देरी , सिग्नल न दिखने , चालक के सो जाने , उसके हार्ट फ़ैल होने आदि कारणों से होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने में मददगार होगी।  इससे संभावित बड़ी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।

इंदरपाल सिंह
नई दिल्ली


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