बरसाना की लट्ठमार होली, विदेशी भी ले रहें हैं आनंद

Last Updated 02 Mar 2012 01:58:35 PM IST

भगवान कृष्ण की साथी राधा के जन्म स्थान बरसाना की लट्ठमार होली बहुत प्रसिद्ध है.


बरसाने की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है.

इस दिन नंद गाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना के पश्चात नंदगांव के पुरुष होली खेलने बरसाना गांव में आते हैं और बरसाना गांव के लोग नंदगांव में जाते हैं. इन पुरूषों को होरियारे कहा जाता है.

जब नाचते झूमते लोग गांव में पहुंचते हैं तो औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं और पुरुष खुद को बचाते भागते हैं.

लेकिन खास बात यह है कि यह सब मारना पीटना हंसी खुशी के वातावरण में होता है. औरतें अपने गांवों के पुरूषों पर लाठियां नहीं बरसातीं. बाकी आसपास खड़े लोग बीच बीच में रंग बरसाते हुए दिखते हैं.

इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यह जब श्रीकृष्ण होली के लिए गोपियों को प्रतीक्षा के कराते थे, तब गोपियां उन पर गुस्सा होकर लाठियां बरसाती थी.

यह लट्ठमार होली आज भी बरसाना की लड़कियों और नंदगांव के लड़कों के बीच खेली जाती है.

सात को जलती होली में से निकलेगा पंडा


होली के लिए मशहूर ब्रज में बरसाना की लट्ठमार होली दो मार्च को है जबकि पंडा जलती आग से होकर सात मार्च को निकलेगा.

ऐसा यहां पिछली कई सदियों से किया जाता रहा है. वैसे तो ब्रज में वसंत पंचमी के अवसर पर चौराहों पर होली जलाने वाले स्थानों पर डांढ़ा गाड़े जाने के साथ ही मंदिरों में होली गायन की परंपरा प्रारंभ हो जाती है. गोस्वामी समाज ठाकुरजी के समक्ष घमार गायन शुरू कर देता है.

रोजाना सांझ होते ही गोस्वामीजन एकत्रित होकर झांझ ढ़प व मृदंग की ध्वनि के साथ प्राचीन होली गायन से संपूर्ण वातावरण होलीमय बना देते हैं. भक्तों पर प्रसाद स्वरूप गुलाल की वर्षा शुरू हो जाती है.

लेकिन सार्वजनिक तौर पर होली का आनंद बरसाना की विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली के आयोजन के साथ ही शुरू होता है. उसके बाद तो मानों ब्रज में विभिन्न प्रकार की होलियों की झड़ी ही लग जाती है.
   
बरसाना की लट्ठमार होली के बाद अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ला दशमी के दिन बरसाना के हुरियार नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने उनके यहां पहुंचते हैं. तब नंदभवन में होली की खूब धूम मचती है. 

दरअसल  बरसाना की लठामार होली भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं की पुनरावृत्ति जैसी है.

माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ इसी प्रकार कमर में फेंटा लगाए राधारानी तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे तथा उनके साथ ठिठोली करते थे.
   
जिस पर राधारानी तथा उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं. ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढ़ालों का प्रयोग किया करते थे जो धीरे-धीरे होली की परंपरा बन गया.

उसी का परिणाम है कि आज भी इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जाता है. इस घमासान लट्ठमार में ऐसा नहीं है कि जो लोग होली खेलने वाले होते हैं,वही लट्ठ के शिकर करते हैं.

जो दर्शक दूर से देखने के बजाए पास आने की कोशिश करते हैं अथवा छेड़छाड़ की कोशिश करते हैं उन्हें भी तेल पिलाए लट्ठ का स्वाद चखने को मिल जाता है.

इसी के साथ समूचा ब्रज होली के रंग में रंग जाएगा. चार मार्च को वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर में व मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर होली का आयोजन होगा.

सात मार्च पूर्णिमा के दिन फालैन में जलती होली से पंडा निकलेगा. आठ मार्च को धूल के दिन समूचे ब्रज के गांव और शहरों में होली का आयोजन होगा.


 



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