स्कूलों में आत्महत्याएं रोकेगी सरकार, प्लान ऑफ एक्शन जारी, मिली सबसे बड़ी 'उम्मीद'

Last Updated 09 Oct 2023 01:18:50 PM IST

समस्या से छुटकारा पाने के लिए सरकार एक गाइडलाइन लेकर आई है जिसका नाम है उम्मीद (UMMEED) इस नई गाइडलाइन के अनुसार अब स्कूलों को सुसाइड प्रिवेंशन के लिए प्लान ऑफ एक्शन बनाना पड़ेगा।


कोचिंग हब कहे जाने वाले राजस्थान के कोटा से आत्महत्या की खबरें ज्यादा आ रही हैं।

भारत में पिछले कुछ सालों में छोटी उम्र में सुसाइड जैसे भयावह कदम उठाने के मामले में इज़ाफा हुआ है। इसी साल अगस्त तक अकेले कोटा में 22 छात्रों के आत्महत्या करने की खबर आई है जो कि शासन प्रशासन को कठखरे में खड़ा करती है।

केंद्र और राज्य  सरकार के लिए ये एक कड़ी चुनौती बन गया है जिसको लेकर दोनों ही सरकारें सख्त क़दम उठा रही हैं, चूंकि बच्चों के लिए पंखे पर लटककर जान देना आसान होता जा रहा है, इसलिए हॉस्टल के पंखों पर गभीरता से काम किया जा रहा है।

प्रशासन द्वारा शिक्षकों को छात्रों पर दबाव कम करने की हिदायतें दी जा रही हैं, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए सरकार एक गाइडलाइन लेकर आई है जो कि 'उम्मीद' (UMMEED) नाम से जानी जाती है।

नई गाइडलाइन के अनुसार, अब स्कूलों को सुसाइड प्रिवेंशन के लिए प्लान ऑफ एक्शन बनाना पड़ेगा, इसके अंतर्गत स्कूलों में वेलनेस टीमें तैयार की जाएंगी। इस टीम का काम स्कूल के सभी छात्रों से बातचीत कर उनमें अवसाद, आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने की किसी भी लक्षण की पहचान कर उन्हें भावनात्मक रूप से सपोर्ट करना और बच्चों को समझाना होगा।

'उम्मीद' (UMMEED) यानी कि Understand, Motivate, Manage, Empathise, Empower and Develop ये 6 पॉइंट्स जिनके जरिये सरकार स्टूडेंट्स पर्सपेक्टिव को और बेहतर बनाने की ओर कार्य करेगी, जिससे खुद को नुक़सान पहुंचाने की संभावनाएं कम हों।

ये हैं UMMEED के 6 पॉइंट्स

U - Understand यानी छात्रों को समझना
M - Motivate यानी छात्रों को प्रेरणा देना
M - Manage यानी अवसाद या किसी तरह की परेशानी से गुजर रहे छात्रों की स्थिति से निपटना
E - Empathise यानी सहानुभूति रखना
E - Empower यानी  सशक्त करना
D - Develop यानी विकसित करना

इस ड्राफ्ट में लिखा है कि छात्रों के लिए कोई भी बदलाव जैसे नए शहर में जाना, नए स्कूल में जाना, अपनों से दूर होना, ये सब परेशान कर सकता है।

ड्राफ्ट के अनुसार आजकल के बच्चों पर ऐसे ही क्लास में टॉप करने, हमेशा अच्छे नंबर लाने, प्रतियोगी परिक्षाओं में क्वालीफाई करने जैसे तमाम दवाब होते हैं। ऐसे में अगर स्कूल में शिक्षक या घर पर माता पिता बच्चों से किसी तरह का असंवेदनशील बात कहता है, तो इससे छात्र ट्रिगर हो सकते हैं। ऐसा न हो इसलिए उम्मीद गाइडलाइन में क्या-क्या कदम उठाए जाने चाहिए ये बताया गया है।

ड्राफ्ट में यह भी लिखा है कि सभी विद्यालयों में स्कूल वेलनेस टीमें बनाई जा सकती हैं, जिसमें प्रिंसिपल, काउंसलर, टीचर, स्कूल मेडिकल ऑफिसर, स्टाफ नर्स अन्य सपोर्ट स्टाफ शमिल रहेंगे।

ड्राफ्ट में वक्त के साथ लगातार बदलाव होते रहेंगे और समय के साथ इसमें अलग-अलग नियम भी जुड़ते जाएंगे।

वेलनेस टीमें आत्महत्या को रोकने के लिए न सिर्फ बच्चों को, बल्कि अगर उन्हें किसी छात्र में अवसाद या खुद को नुकसान पहुंचाने वाली आदत नजर आती हैं तो उनके परिवार या माता पिता को भी आत्महत्या के बारे में जागरूक करने का काम करेगी। वेलनेस टीमें को किसी ऐसे छात्र के बारे में अगर पता चलता है तो उसकी पहचान को गोपनीय रखेगी।

ड्राफ्ट के अनुसार, स्कूल में छात्रों का ध्यान रखना सिर्फ शिक्षक या प्रिंसिपल का काम नहीं बल्कि इस मिशन में सबको सहयोग देना होगा। अगर शिक्षक या पेरेंट्स को अपने बच्चे में कुछ भी अलग नजर आता है तो उन्हें तुरंत एक दूसरे से बातचीत करनी होगी।

ड्राफ्ट में आगे कहा गया है कि :
 
1. स्कूल में किसी भी छात्र के साथ भेदभाव या उनकी तुलना न की जाए। अंकों के आधार पर या रंग, कपड़े, जूते के आधार पर, बिल्कुल भी नहीं। उनमें हीन भावना किसी भी सूरत में न पनपने दें।

2. गाइडलाइन के अनुसार वेलनेस टीम को सारा एक्शन चुपचाप लेना है। आत्महत्या को रोकने को हर परिसर में डिटेल एक्शन प्लान बने और समय से उस पर अमल भी हो।

3. गाइडलाइन 'उम्मीद' (UMMEED) के मुताबिक पीड़ित छात्रों की मदद करने के लिए पैरेंट्स यानी माता-पिता का सहयोग लिया जाएगा।

4. ड्राफ्ट कहता है कि सिर्फ स्कूल प्रिंसिपल या टीचर नहीं, बल्कि इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए शैक्षिक परिसर का हर सदस्य को इसमें सहयोगी बनना होगा।

5. पैरेंट्स का अलर्ट होना सबसे जरूरी।

सरकारी डेटा की मानें तो देश में साल 2021 में लगभग 13 हजार छात्रों ने आत्महत्या की थी, जबकि एक साल पहले यानी साल 2020 में 2021 के आंकड़े से 4.5 प्रतिशत कम आत्महत्याएं हुई थीं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत में हर साल करीब सात लाख लोग आत्महत्या करते हैं और 15-29 साल के उम्र में आत्महत्या मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है।

मनोचिकित्सकों का मानना है कि वर्तमान में बच्चों के बीच आत्महत्या की संख्या बढ़ने का एक कारण ये भी है कि इन सभी के हाथ में स्मार्ट फोन आ गया है। कुछ बच्चे फोन में गेम खेलने के इतने आदि हो जाते हैं कि पढ़ाई करने के लिए खुद के समय ही नहीं दे पातें। फोन में ज्यादा समय बिताने के कारण वह कक्षा में पढ़ाई पर ध्यान कम देने लगे और पिछड़ने लगे। फिर जब बच्चे अपने सहपाठियों से कम अंक लाने लगते हैं या पिछड़ जाते हैं, तो डिप्रेशन में चले जाते हैं और मन में सुसाइड के ख्याल आने लगते हैं।

कोटा की बात करें तो इस जगह पर एक कोचिंग क्लास में 200-300 छात्र होते हैं और यहां पढ़ाई भी काफी तेजी से करवाई जाती है, ऐसे में अगर किसी छात्र ने एक या दो दिन बंक मार दिया तो फिर आप पढ़ाई को पकड़ नहीं पाते, पीछे हो जाने के कारण तनाव बढ़ता जाता है, उसका असर टेस्ट में दिखने लगता है।

समय डिजि़टल
नई दिल्ली


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