इस बार CM अशोक गहलोत पर ऐसे भारी पड़ेंगे सचिन पायलट

Last Updated 09 Apr 2023 03:38:28 PM IST

सचिन पायलट एक बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इसी साल दिसंबर माह से पहले राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।


सचिन पायलट और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (फाइल फोटो)

ऐसे में सचिन पायलट का अपनी ही सरकार के मुखिया के खिलाफ बगावती तेवर अपनाना कांग्रेस हाईकमान को निश्चित ही बेचैन कर रहा होगा। हालांकि सचिन पायलट वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार को लेकर इस बार गहलोत के विरोध में खड़े हुए हैं, लेकिन माना यही जा रहा है कि पार्टी हाईकमान पर दबाव बनाने का उनका एक तरीका है।

सचिन पायलट युवा नेता हैं। इनके साथी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया बहुत पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। आज वह केंद्र में मंत्री भी हैं। राजेश पायलट की नाराजगी को पार्टी हाईकमान इस समय हल्के में लेने की भूल नहीं करेगा, तो क्या यह मान लेना चाहिए कि राजेश पायलट चुनाव से पूर्व जो भी शर्त रखेंगे, कांग्रेस हाईकमान उसे मान लेगा। सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उनके नेतृत्व में 2018 का राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा गया था। कांग्रेस ने उस समय बहुमत तो हासिल नहीं किया था, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई थी।

कांग्रेस को कुल 100 सीटें मिली थी। सचिन पायलट चाहते थे कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन उनके समर्थन में आए विधायकों की संख्या बहुत कम थी। जबकि अशोक गहलोत ने सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या बल का दावा किया था। उन्होंने 115 विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया था। राजस्थान में विधानसभा की 200 सीटें हैं। ऐसे में एक बार फिर से अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए थे। उस निर्णय से सचिन पायलट बहुत खुश नहीं थे। उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन वह राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का प्रयास करते रहे। सरकार बनने के  लगभग 2 साल बाद उन्होंने बगावत कर दिया था दिया था। राजस्थान में बहुत दिनों तक राजनैतिक नाटक चलता रहा। चर्चा यह भी होने लगी थी कि कहीं सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल न हो जाएं।

 गहलोत गुट के लोग ,उनके  भाजपा में शामिल होने की अफवाह फैलाते रहे। कांग्रेस हाईकमान के समझाने से सचिन मान  तो गए थे लेकिन मुख्यमंत्री बनने की उनकी लालसा आज भी बनी हुई है। पार्टी ने उन्हें मना लिया था, लेकिन उस समय गहलोत और सचिन पायलट के बीच एक लंबी दीवार खड़ी हो गई थी। तभी से दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी हो गए थे। 2018 के विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत ने अपने प्रयास से अपने 100 समर्थकों को विधानसभा का टिकट दिलवा दिया था। जबकि सचिन पायलट अपने समर्थकों को 50 सीट ही दिलवा पाए थे।

रविवार को सचिन पायलट ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि वह अपने सरकार के विरोध में नहीं है बल्कि अपनी सरकार से चाहते हैं कि वसुंधरा सरकार के दौरान जो 50 हजार करोड़ रुपए के घोटाले हुए थे, उसकी जांच की जाए।

उन्होंने बताया कि 28 मार्च 2002 को चिट्ठी लिखकर भाजपा सरकार में हुए घोटालों की जांच करने की मांग की थी, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी चिट्ठी को नजरअंदाज कर दिया था। उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि अभी चुनाव में कुछ महीने बाकी है, लिहाजा वह चाहते हैं कि भाजपा सरकार के दौरान हुए घोटाले की जांच करने का जो जनता से वादा किया गया था, उसे पूरा किया जाए। बीजेपी सरकार के दौरान जो घोटाले हुए थे, उसका खुलासा चुनाव से पहले कर दिया जाए। अब उसकी जांच होगी या नहीं होगी। लेकिन सचिन पायलट के इस कदम से कांग्रेस हाईकमान के कान खड़े हो गए होंगे।

सचिन पायलट अपने दबाव का फायदा उठाना चाहेंगे। 11 अप्रैल को वह अपनी ही सरकार के खिलाफ शहीद स्मारक पर अनशन करेंगे। उनका अनशन एक दिन का होगा। वह चाहेंगे कि उनके समर्थकों को अधिक से अधिक टिकट दिया जाए। ताकि चुनाव के बाद बहुमत सिद्ध करने की बात आए तो उनके साथ विधायकों का पर्याप्त संख्या बल हो। गहलोत जादूगर हैं। राजस्थान में उनका जादू चलता भी है। काग्रेस हाईकमान इस बात को बखूबी जानता है। पिछले कुछ महीनों से उनकी कुछ गतिविधियों से कांग्रेस हाई कमान नाराज है।

कांग्रेस हाईकमान के पास सचिन पायलट के रूप में एक युवा नेता है जो भविष्य में कांग्रेस के लिए बहुत कुछ कर सकता है दूसरी तरफ गहलोत जैसा एक बुजुर्ग नेता है जो बहुत कम वर्षों तक ही राजनीति में अपनी सक्रियता दिखा सकता है। ऐसे में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि अगले विधानसभा चुनाव में वह गहलोत को ज्यादा तवज्जो दे या फिर सचिन पायलट को।
 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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