शरद पवार के इस्तीफा वापस लेने से अजीत पवार पकड़ेंगे राज ठाकरे की राह!
एनसीपी प्रमुख शरद पवार के इस्तीफा वापस लेने से भले ही पार्टी कार्यकर्ता खुश हो रहे होंगे, लेकिन एक खटास जरूर पैदा हो गई। अभी उस खटास को महसूस नहीं किया जा रहा है, क्योंकि मामला अभी ताजा है। विपक्षी एकता को मजबूत करने वाली पार्टिया शायद, शरद पवार के इस कदम की सराहना कर रही होंगीं, लेकिन ऐसी संभावना जताई जा रही है कि कहीं अजीत पवार 2006 वाली कहानी ना दोहरा दें।
![]() sharad pawar and ajeet pawar |
2004 में बालासाहेब ठाकरे ने जब उद्धव ठाकरे को शिवसेना का अध्यक्ष बनाया था, तब नाराज होकर राज ठाकरे ने 2006 में अपनी नई पार्टी बना ली थी। आज से तीन दिन पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया था। एक कार्यक्रम के दौरान जब उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा की थी तो उनकी पार्टी के कई नेताओं को यकीन ही नहीं हुआ था। पार्टी के कई नेता भाउक हो गए थे। कइयों के आंखों में आँसू आ गए थे। शरद पवार पर इस्तीफा वापस लेने का दबाव बनने लगा। आखिरकार शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान शरद पवार ने अपना इस्तीफा वापस लेने की घोषणा कर दी। शरद पवार ने इस्तीफा क्यों दिया, फिर बाद में इस्तीफा वापस क्यों लिया ,अभी तक उस पर चर्चाएं जारी हैं। लेकिन इस बीच एनसीपी का कोई नेता अगर ज्यादा चिंतित है तो वह हैं शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार।
अजीत पवार की वजह से पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र में राजनीति गरमाई हुई है। कई बार उन्होंने सार्वजनिक रूप से कह दिया है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनना है। कई बार उनसे सवाल पूछे गए कि क्या अगले चुनाव के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनना है तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से जवाब दे दिया था कि अगले चुनाव के बाद क्यों? अभी मौका मिलेगा तो वो मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हैं। उनकी बातों को सुनकर यह अनुमान लगाए जाने लगा था कि आखिर अजीत पवार इतने विश्वास के साथ ऐसा क्यों कह रहे हैं?, अनुमान लगाया जाने लगा था कि उनकी पार्टी के विधायक कहीं उनके साथ जाने को तैयार तो नहीं बैठे हैं? उनके विश्वास का कारण कहीं महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से उनकी नजदीकियां तो नहीं।
शारद पवार के इस्तीफे के बाद अजीत पवार को कोई ख़ास टेंशन नहीं हुई थी। शायद उन्हें लग रहा होगा कि शारद पवार के इस्तीफा देने से उनका काम आसान हो गया है। ऐसी चर्चा होने लगी थी कि शायद एनसीपी के विधायकों को लेकर वह भाजपा में शामिल हो जाएं। क्योंकि एकनाथ शिंदे गुट के 16 विधायकों का भविष्य सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिका है।
अगर सुप्रीम कोर्ट ने एकनाथ शिंदे के विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया तो उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। अगर ऐसा हो जाता तो भाजपा भी जवाबदेही से बच जाती और अजीत पवार के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता भी साफ हो जाता। लेकिन अब गणित गड़बड़ हो गई है। निश्चित ही इस समय अजीत पवार कुछ न कुछ सोच रहे होंगे। अजीत पवार की महत्वकांक्षा अगर ऐसी ही बनी रही तो संभव है कि वो राज ठाकरे की राह पर ना चल पड़ें।
बालासाहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे कभी महाराष्ट्र के तेज तर्रार नेता माने जाते थे। उन्हें शिवसेना का उत्तराधिकारी माना जा रहा था, लेकिन 2004 में जब बालासाहेब ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को शिवसेना का अध्यक्ष बनाया तो राज ठाकरे नाराज हो गए थे। उन्होंने 2006 में महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के नाम से अपनी नई राजनितिक पार्टी बना ली थी। महाराष्ट्र में आज एक बार फिर वैसी ही स्थिति उत्पन्न होती हुई दिख रही है।
जिस तरह बालासाहेब ठाकरे ने भतीजे की जगह अपने बेटे को तरजीह दी थी, उसी तरह कहीं आज अगर शरद पवार ने अपनी बेटी को भी अध्यक्ष बनाने का मन बना लिया तो संभव है कि अजीत पवार बगावत कर बैठें। वैसी भी राजनीति में ऐसा होना कोई नई बात नहीं है। सत्ता की चाहत में अपने सगे सम्बन्धियों को छोड़ना आम बात है। हालांकि शरद पवार के इस्तीफा वापस लेने से महा विकास अघाड़ी को रहत मिली होगी। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में उठा भूचाल अभी शांत होने वाला नहीं है।
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